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सुनीता के जीवन में लैंगिक संघर्ष पर आधारित किया है। यहाँ दोनों का मानसिक द्वन्द्व असामाजिक है और अवसर पाकर दैहिक स्तर पर भी उतरता है। 'कल्याणी' 'सुखदा', 'व्यतीत' और 'विवर्त' के पात्रों में काम की अमुक्ति की स्पष्ट प्रतिक्रिया दीख पड़ती है। इसी से उनके जीवन को प्रवाह मिला है। सेक्स उनकी मूल समस्या है। कल्याणी के दाम्पत्य में असामंजस्य का कारण लैंगिक है, सामाजिक नहीं। विवाह के पहले वह प्रीमियर से प्रेम करती थी। डॉ० असरानी ने दुष्टतापूर्वक उस पर वेकार का लांछन लगाकर बदनाम किया और विवाह के क्षेत्र में उसकी उम्मीदवारी हल्की करके अहसान रूप में उससे स्वयं विवाह करने का प्रस्ताव रखा। कल्याणी ने सेक्स मार्ग की इस कुण्ठा को जीवन में तनाव पैदा नहीं करने दिया। वह सब कुछ सहती भी गयी उससे परोक्ष में पति को सोचने के लिए विवश भी किया और अन्दर ही अन्दर जीवन को न्यौछावर कर डाला। ‘सुखदा' में सुखदा अनेक समृद्ध कल्पनाओं को लिए हुए पति गृह में आयी थी, निर्धन पति के कारण जब सब पर पानी फिर जाता है, तो मौका देखकर वह मचल उठती है। लाल के करीब जाने से उसकी इच्छा की पूर्ति की सम्भावना हुई तो गृहस्थ जीवन को तोड़ने के प्रयास तीव्र हो गये। सुखदा लाल के पौरुष की ओर आकर्षित होकर उस पर अपना तन न्यौछावर कर बैठी। यहीं सुखदा की हार हो गयी। उसकी सेक्स भावना हर क्षेत्र में प्रताड़ित रही, इसलिए उसकी प्रतिक्रिया नष्ट होने लगी। उसने स्वयं को खुद ही नष्ट कर डाला। मूलतः वह काम-मुक्ति का ही शिकार थी।
विवर्त' और 'व्यतीत' जैनेन्द्र के ऐसे उपन्यास हैं, जहाँ काम की समस्या तो सहज है, किन्तु उसका निवारण 'सुनीता' की पद्धति से हुआ है। 'विवर्त' में जितेन आर्थिक समस्या के कारण भुवनमोहिनी को अपनी न बना सका और इसका आघात उसको क्रान्तिकारी बनाने में सफल हो गया। व्यतीत का नायक जयन्त अनिता के प्रति लैंगिक
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