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जैनेन्द्र के कथा साहित्य का विवेचन करने के लिए स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों में सैक्स की समस्या को अध्ययन का विषय बनाना ठीक प्रतीत होता है। डॉ० मनमोहन सहगल के विचारानुसार
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'आधुनिक मनोविज्ञान ने सिद्ध किया है कि मानव-जीवन वासना से परे हो ही नहीं सकता। वासना श्रेय हो या हेय, यह जीवन का अनिवार्य अंग है। 30 जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य में स्त्री-पुरुष पात्रों में जीवन के प्रति असन्तोष मानसिक तनाव और लैंगिक विकारों का विशेष चित्रण उपलब्ध है। इसी से वे पात्र अधिकतर कुंठित एवं असाधारण हैं। उनके कथा साहित्य का मूल अमुक्त वासना है, किन्तु सबकी प्रतिक्रिया अलग-अलग है । इसलिए प्रत्येक पात्र व्यक्ति के समष्टि का प्रतिनिधि है । 'परख' में सेक्स की पृष्ठभूमि सामाजिक है कट्टो का सत्यधन को चाहकर भी न पा सकने का कारण सामाजिक प्रतिबन्ध ही तो है । सत्यधन के विवाह पर कट्टो की प्रतिक्रिया भी अपनी सामाजिक स्थिति से असन्तुष्ट होने के कारण ही थी और बाद में बिहारी को पाकर भी जब वह समाज की कुदृष्टि के कारण उसकी समूची बन सकने में असमर्थ रही, तो बलात् एक उदात्त अन्त तरफ मुड़ गयी । कट्टो के जीवन का कच्चा चिट्ठा वास्तव में सेक्स की चाहत को रोकने तक ही सीमित है। उसकी सेक्स कथा का आधार सामाजिक बन्धन है, उसमें मानसिक अमुक्ति का कोई स्थान नहीं । 'त्यागपत्र' की मृणाल की भी यही दशा है। शीला के भाई को न पा सकने का कारण भी सामाजिक है। पति से टूट कर कहीं भी ठिकाने का अभाव सामाजिक रचना-विधान के कारण है और यह जानते हुए भी कि कोयले वाला जीवन नहीं पार करेगा, उसके प्रति समर्पण भी सामाजिक व्यवस्था है । 'परख' और 'त्यागपत्र' में सेक्स का स्वरूप सामाजिक है । 'सुनीता' में जैनेन्द्र ने सेक्स को हरि प्रसन्न और
30 डॉ० मनमोहन सहगल - उपन्यासकार जैनेन्द्र मूल्यांकन और मूल्याकन, पृष्ठ-73
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