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ओर से कोई दबाव उत्पन्न नहीं होता है। भुवनमोहिनी और जितेन के प्रेम सम्बन्धों के कारण परिवार पर कोई असर नहीं पड़ता। जितेन की प्रेम भावना अतृप्ति के कारण क्रान्ति में परिवर्तित हो जाती है। जितेन की सभी क्रियायें अप्राप्ति से प्रकट होती हैं, किन्तु उन सभी क्रियाओं का भुवनमोहिनी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह जितेन की विवशता को जानते हुए भी उसके प्रति अपार स्नेह और प्रेम रखती है। जैनेन्द्र का उद्देश्य विवाह में प्रेम के माध्यम से स्वस्थ वातावरण को स्थापित करना है। वे पति-पत्नी की निकटता के लिए बाहर से प्रवेश करने वाले प्रेम को आवश्यक मानते हैं। "सुनीता' में वीरान जंगल में जब सुनीता हरि प्रसन्न के सम्मुख पूर्ण समर्पण करने के उपरान्त लौटती है तो उसका मन शान्त रहता है। वह पुनः अपने घर परिवार में सुख शान्ति का माहौल स्थापित प्रदान करने में समर्थ होती है। 'सुनीता' में जैनेन्द्र का आदर्श अपनी पूर्णता पर परिलक्षित होता है।
जैनेन्द्र के कथा साहित्य का द्वन्द्व केवल प्रेम को लेकर ही नहीं उत्पन्न होता, उसमें घर-बाहर के मध्य असन्तुलन की स्थिति ही विशेष खटकती है। उन्होंने विवाह में प्रेम को दो चार स्थलों में ही घटित होते हुए नहीं दर्शाया है, बल्कि उनका सम्पूर्ण कथा साहित्य इसी पर आधारित है। उनके अनुसार पत्नी-पति में प्रेमी-प्रेमिका समाप्त नहीं हो सकते। अलग से उन्हें होना ही है। दोनों का होना बन्द नहीं होने वाला। जैनेन्द्र की विवाह और प्रेम सम्बन्धी विचारधारा समसामयिक अधिकांश लेखकों में दृष्टिगत होती है। प्रत्येक पुरुष और स्त्री में एक दूसरे के प्रति काम भावना की इच्छा होती है। चाहे वह व्यक्ति किसी भी स्तर का हो। वैवाहिक जीवन के प्रारम्भ में सब कुछ अनजाना रहता है। परन्तु धीरे-धीरे पति-पत्नी के मध्य स्नेहपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो सकता है और उनका बाहरी आकर्षण कम हो
23 जैनेन्द्र कुमार -इतस्तत., पृष्ठ -68
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