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नीलिमा असाधरणता को प्राप्त हुई हैं । जैनेन्द्र के पात्र प्रायः विचारक है, किन्तु नियति और आस्था का सहारा निरन्तर लिए रहते हैं। वे जिस मार्ग को शुभ मानकर उस पर निकलते हैं तो कदम पीछे नही हटाते हैं। अपनी हानि को समझते हैं; किन्तु उस आदर्श में पूर्ण विश्वास रखकर निरन्तर पीडा सहते हुए भी वे धैर्यवान हैं। 'व्यतीत' की अनिता अपनी टूटी हुई गृहस्थी को समझती है, किन्तु शायद अपराध भावना से प्रेरित जयन्त के प्रति प्रायश्चित भाव से सामान्य का आवाहन करती सी प्रतीत होती है । मृत्यु उनके लिए भय का उपकरण नहीं, क्योंकि आस्था की राह पर अपनी लक्ष्य सिद्धि हेतु प्रयाण करने वाला पात्र मृत्यु से क्यों भयतीत हो, यह उनका आदर्श है। इसीलिए तो 'कल्याणी' की कल्याणी, 'त्यागपत्र' की मृणाल और 'अनामस्वामी' की वसुन्धरा प्रसन्नता से मौत को गले लगाती हैं। उन्हें अपनी मृत्यु शक्ति में भी पर्याप्त विश्वास है । 'जयवर्धन' की इला और लिजा 'व्यतीत' की अनिता इस तथ्य के जीते-जागते उदाहरण हैं ।
वातावरण की दृष्टि से जैनेन्द्र का बाहरी परिवेश की ओर आग्रह नहीं है। उनके कथा साहित्य में अन्तर्मन का गम्भीर चित्रण इतने सूक्ष्म ढंग से किया जाता है कि अन्दर की कोई भी गाँठ अछूती नहीं रहती। उन्होंने अपने कथा साहित्य में कथानक की भाँति वाह्य वातावरण को कोई विशेष महत्व नहीं दिया है। इसकी अपेक्षा चिन्तन और आन्तरिक समस्याओं का उनके कथा साहित्य में विशेष उल्लेख हुआ है। जैनेन्द्र जी की दृष्टि उसी भाव का विशेष स्पर्श कर पायी है जो आधुनिकता की दृष्टि से जीवन के संग जूझते हुए हमारी अनुभूतियों की विभूति बन जाया करता है । 'त्यागपत्र' में आज की खोखली सभ्यता और स्वावलम्बन के बीच एक संघर्ष दीख पड़ता है । बाद के उपन्यास 'अनामस्वामी' में लेखक ने यौन तथा आतंक की जिस प्रवृत्ति का स्पर्श किया है, वह वर्तमान परिवेश का नवीनतम रूप कहा जाता है। जैनेन्द्र समाज के चित्रकार न होकर मनुष्य के हृदय
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