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किसी देश या जाति के चरित्र-निर्माण में साहित्य का बहुत सहयोग रहता है। साहित्य के माध्यम से ही राष्ट्र का उत्थान संभव
है। इस प्रकार का साहित्य, जो राष्ट्र के उत्थान में सहायक होता है, वह मानवता की नव जागृति का सन्देश लिए हुए होता है और उसमें राष्ट्र का आत्मसम्मान निहित होता है। मुंशी प्रेमचन्द के शब्दों में -
_ 'साहित्य तो वह कला है जो समाज में जागृति और स्फूर्ति लाये, जो जीवन की यथार्थ समस्याओं पर प्रकाश डाले।26
युग-चेता कलाकार का साहित्य युगचितेरा होता है। वह सत्य बात को प्रकट करने में संकोच महसूस नहीं करता है। साहित्य वह दर्पण है, जिसके सामने जाते ही तत्काल समाज का सत्य चित्र दिखाई दे जाता है। समाज अथवा साहित्य बीती हुई संस्कृति में डूबे हुए भविष्य का आलिंगन करते हैं। इस प्रकार साहित्य और समाज एक दूसरे पर आश्रित हैं। साहित्यकार के पास साहित्य की ऐसी संजीवनी शक्ति है, जिससे समाज के विभिन्न लोगों को जीवन-दान मिलता है। वह अपने साहित्य के माध्यम से समाज में नवीन चेतना का संचार करता है। साहित्य का सबसे बड़ा दायित्व समाज के प्रति होता है, जिसे युग चेता साहित्यकार ही निभा पाता है।
साहित्य जन-जीवन की सत्य तस्वीर प्रस्तुत करता हुआ समाज को विकास के पथ पर अग्रसरित करने की प्रेरणा प्रदान करता है। युगचेतना से प्रभावित होकर साहित्यकार के साहित्य में युग की भावनाओं को सहज रूप से जाना जा सकता है। प्रत्येक कलाकार सामाजिक प्राणी होने के नाते अपनी भावनाओं द्वारा परिचालित होता है। कर्म, भावना और इच्छा का व्यक्त रूप साहित्य है। सत् साहित्य यद्यपि भावनाओं के प्रचार के लिए नहीं लिखा जाता है, तथापि उसमें
26. प्रेमचन्द - हस, सितम्बर 1936
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