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की प्रेरणा आदि काल से व्यक्ति समाज में सन्तुलन एवं सामंजस्य की समस्या तथा उसके परिवर्तनशील सम्बन्धों से होती है।16
इस प्रकार जीवन को आँकने के लिए मुख्यतया दो प्रवृत्तियों का सहारा लिया गया है - एक का सम्बन्ध वैयक्तिक हित से और दूसरी का सामाजिक कल्याण की भावना से जुड़ा हुआ है।
सामाजिक क्रान्तियों के परिणाम स्वरूप विभिन्न प्राचीन परम्पराओं का विनाश और नवीन चेतना का विकास होता है। जब प्राचीन परम्परायें युग के अनुकूल महत्वपूर्ण नहीं रह जाती, तब नवीन परम्पराओं का जन्म होता है। उस समय साहित्य और सामाज एक नवीन दिशा में मोड़ लेते हैं। युग चेता. साहित्यकार अपने युग का कुशल साहित्य सर्जक एवं युग का सफल निर्माता होता है। उसकी प्रमुख विकासोन्मुख चेतना बँधी-बँधायी सारणियों एवं परम्पराओं से जुडकर नहीं बँधना चाहती है। वह नवीनता में विश्वास रखता है तथा परम्पराओं से विद्रोह करके नवीन मार्ग का यात्री बनने के लिए व्याकुल हो जाता है। आधुनिक युग के अनेक 'वाद' विकासशील युग चेतना के परिणाम हैं। यह सब परम्पराओं का विद्रोह है जो कई युगों तक चलता रहता है। कोई भी साहित्य परम्परा से बिल्कुल अलग नहीं हो पाता है। नवीन जीवन एवं परिस्थितियों के परिवर्तित हुए परिवेश में एक तरफ तो वह परम्परा से सामन्जस्य रखता है और दूसरी तरफ नवीन मित्र का साथ निभाने के लिये सामयिक परिस्थितियों का प्रायोजन करता है।
परम्परा और पृष्ठभूमि सरिता के दो कूलों की तरह हैं जिसकी मर्यादा में बंधकर वह अविरल गति से प्रवाहमान रहती है। जिस प्रकार दो कूल कभी एक दूसरे से मिलते नहीं, वे मौन रहकर
16. डॉ० सुषमा धवन - हिन्दी उपन्यास, पृष्ठ-3
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