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गयी है। 'परख' में कट्टो की मॉ बेटे से बात करते समय सम्भवतः इतने अधिक बार बेटा सम्बोधन का प्रयोग करती है कि वहाँ पर कृत्रिमता आ जाती है। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में कुछ ऐसे संवाद भी प्राप्त हैं जो साधारणतया हिन्दी कथा साहित्य में दुर्लभ हैं। ऐसा करके वे अपनी मौलिकता का परिचय देते हैं।
द्विमुखी संवाद
'सुनीता' में श्रीकान्त एक ही समय में एक ही संवाद में दो व्यक्तियों से बात करता है। संवाद इस प्रकार
'अजी, सेर-भर तो लीजिए ही।'
'सेर, अच्छा सेर सही।' (मुड़कर), चल सत्या, हमारे साथ ही चल। आज तेरी पढ़ाई हुई कि नहीं?---और वहीं से साईस को आवाज देकर बुलाया, कहाँ हो भाई, यह सब गाड़ी में रखो और देखो वह तांगा खड़ा है, उसका सामान भी गाड़ी मे रख लो। (मुड़कर) जीजा जी तागे वाले को कितने पैसे देने हैं।
देशकाल तथा वातावरण निर्माण
जैनेन्द्र के कथा साहित्य में देश-काल चित्रण व्यंग्य रूप में विद्यमान है। अनेक ऐसे प्रसंग तथा छिटफुट ब्यौरे जहाँ-तहाँ उपलब्ध हैं जो कथा साहित्य का समय तथा स्थान संकेतित करते हैं। ‘सुनीता' में दिल्ली का ‘पाँच लाख के शहर में, जहाँ वाइसराय भी रहता है-होना तथा सुनीता-श्रीकान्त की फोटो पर 5/6/32 लिखा
95 जैनेन्द्र कुमार-सुनीता, पृष्ठ-218 96 जैनेन्द्र कुमार-सुनीता, पृष्ठ -28
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