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'नहीं
'फिर?
'कहार हॅू।'
'क्या लोगे?'
'पढ़े-लिखे मालूम होते हो-
'नहीं- -जी-
'कुछ नहीं पढ़े?
'चार जमात पढ़ा हूँ | 2
किस भांति विद्युत सी गति से संवाद आगे बढ़ते हैं। इसके अलावा छोटे-छोटे संवाद शीघ्र समाप्त हो जाते हैं
- शायद मिलना हो ।'
'अच्छा तमारा
'तो मै जाऊं !'
'हाँ नमस्ते'
'नमस्ते 193
संवादों में नाटकीयता की वृद्धि करने के लिए कोष्ठक में विभिन्न ध्वनियाँ, पात्र के हाव-भाव दे दिए गए हैं यह प्रवृत्ति 'परख', 'सुनीता' तथा 'कल्याणी' में विशेष रूप से पाई जाती है। कहीं-कहीं लम्बे भाषणों में इन कोष्ठकों से विराम अवकाश भी मिला है। कहीं-कहीं यह प्रवृत्ति आत्यन्तिकता को स्पर्श करने में कृत्रिम हो
92 जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ-14
93 जेनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ-53
94 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता पृष्ठ-53
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