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होना" 'त्यागपत्र' में दुअन्नी, अठन्नी, 'कल्याणी' में चैरिटी हॉस्पिटल तथा महिलाओं के डेपुटेशन का मिलना, “सुखदा' में इवनिंग न्यूज100 व्यतीत में ड्योढे दर्जे का सफर11 'जयवर्धन' में प्रेम गोष्ठी102 'अनन्तर' में हिप्पी लोग आदि संकेत उस काल का बोध करा देते हैं- जिससे उपन्यास का कथानक सम्बन्धित है। 'मुक्तिबोध' तथा 'अनन्तर' में दिल्ली के अतिरिक्त बम्बई, नैनीताल, अहमदाबाद तथा माउन्ट आबू नगर भी उल्लिखित हैं। 'परख' के कथानक में गॉव के वातावरण का उल्लेख है। परन्तु बाद के उपन्यासों 'मुक्तिबोध' तथा 'अनन्तर' में आकर यह महानगरों, होटलों ट्रंक-काल्स, कैडलैक कारों तथा 'एयर कंडीशन कोच' का हो जाता है।
जैनेन्द्र ने अपने कथा साहित्य में देशकाल की अपेक्षा वातावरण के निर्माण को अधिक ध्यान दिया है। पात्र तथा उनकी मनःस्थिति का सम्बन्ध व्यापक देशकाल की अपेक्षा तात्कालिक परिवेश तथा आस-पास फैली वस्तुओं तथा व्यक्तियों से अपेक्षाकृत अधिक निकट का रहता है। अतः कहीं-कहीं जैनेन्द्र के पात्र परिस्थितियों से जुड़े वातावरण का कुशल चित्रण कर देते हैं। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में विविध प्रकार के वातावरण मिलते हैं। वह वातावरण कहीं घरेलू जीवन से सम्बन्धित रसोइयों का है, कहीं अस्त-व्यस्त रहने वाले कुण्ठाग्रस्त पात्रों की कोठियों का है, तो कहीं मध्यवर्गीय सम्भ्रान्त सुशिक्षित व्यक्तियों के कमरों का है। जयन्त की कोठरी का वातावरण चित्रित करने के लिए लेखक विशद् आडम्बर नहीं रचता, केवल इतना लिखता है-'आगे कोठरी की दीवार है जो मैली है और धरती ऊबड़ खाबड़ है। मैंने दौडकर कुप्पी जलाई----वह झट खटोला लेकर
97 जैनेन्द्र कुमार-सुनीता. पृष्ठ -46 98 जेनेन्द्र कुमार-त्यागपत्र, पृष्ठ -41 99 जैनेन्द्र कुमार-कल्याणी, पृष्ठ -21 100 जैनेन्द्र कुमार-सुखदा, पृष्ठ -28 101 जैनेन्द्र कुमार-व्यतीत. पृष्ठ -67 102 जेनेन्द्र कुमार-जयवर्धन, पृष्ठ -260 103 जैनेन्द्र कुमार-अनन्तर, पृष्ठ -133
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