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इस जीवन-यात्रा में आए अवरोधों को दूर करने का उपाय दर्शन ही बताता है।
जैनेन्द्र की दार्शनिक चेतना उनकी कृतियों में नारी-पुरुष सम्बन्धों, अन्तः-बाह्य परिवेशों आदि के माध्यम से अभिव्यक्त हुई है। उन्होंने आत्मानुभूत सत्य का प्रकटीकरण अपने कथा-साहित्य के माध्यम से किया है।
अध्याय पाँच का शीर्षक है - 'जैनेन्द्र के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिक चेतना'। इसके अन्तर्गत कथा-साहित्य और मनोविज्ञान का अन्तर्सम्बन्ध पुरुष पात्रों के माध्यम से व्यक्त जैनेन्द्र की मनोवैज्ञानिक चेतना तथा नारी पात्रों के माध्यम से व्यक्त जैनेन्द्र की मनोवैज्ञानिक चेतना का विवेचन किया गया है।
मनोविज्ञान के प्रवेश ने साहित्य को एक नयी दिशा प्रदान की। मनोविज्ञान से सबसे अधिक प्रभाव कथा-साहित्य ने ग्रहण किया। जैनेन्द्र के कथा-साहित्य में मनोविज्ञान का प्रभाव प्रत्यक्ष है। उनके पात्र मनोवैज्ञानिक दर्शन की अभिव्यक्ति करते हैं। स्त्री तथा पुरुष दोनों ही पात्रों के मनोवैज्ञानिक चित्रण उनके कथा-साहित्य में मिलते हैं।
जैनेन्द्र के कथा-साहित्य में व्यक्ति की प्रधानता है। उनके पात्र व्यक्तिपरक हैं। उनका मूल्यांकन, उनकी निजी चिन्तन पद्धति और उनकी निजी परिस्थितियों तथा अलग प्रकार के आचरण पर आधारित
अध्याय छ: का शीर्षक है - "जैनेन्द्र के कथा-साहित्य में शिल्पगत चेतना'। इसके अन्तर्गत कला और शिल्प तथा युगचेतना के अन्तर्सम्बन्ध का विवेचन करते हुए कला का स्वरूप, साहित्य में शिल्प-प्रयोग तथा उसका आशय, जैनेन्द्र के कथा-साहित्य में
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