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कि इसका निरूपण पहले रवीन्द्रनाथ कर चुके हैं। डॉ० मदान के विचार द्रष्टव्य हैं - 'इस तरह घर और बाहर की समस्या इनकी उपन्यास कला की मूल समस्या है, जिसका निरूपण रवीन्द्र नाथ के उपन्यास 'घर और बाहर' में पहले हो चुका था।'
जैनेन्द्र जी के प्रायः सभी उपन्यासों की कथावस्तु करुणा से भीगी हुई है। उनकी मूल संवेदना को देखते हुए यह सर्वथा स्वाभाविक भी है। कथावस्तु को दुःख का रंग देने के लिए कई उपकरणों का प्रयोग हुआ है। कथा में वर्णित पात्रों का जीवन दुःखमय होता है, वे जीवन भर निर्दोष रहने पर भी समाज या समाज के व्यक्तियों, विधानों द्वारा दी गयी यातना के संघर्ष भोगते हैं तथा अन्त में प्रतिवाद का एक शब्द कहे बिना इस संसार से विदा हो जाते हैं । पाठक की कथा के प्रति तल्लीनता भी इस करुणोत्पादन के लिए उत्तरदायी है। समाज का जीतना तथा पात्र की हार की त्रासदी भी इस करुणा को सघन बनाती है। इस शिल्प से कथावस्तु की प्रभावात्मकता सघन हुई है।
चरित्र-चित्रण-शिल्प
__ जैनेन्द्र जी ने विशुद्ध रूप में जीवनियाँ तो नहीं लिखीं, परन्तु ऐसे उपन्यास अवश्य लिखे हैं जिनमें प्रधान चरित्रों को महत्व दिया गण है। उनकी कथा वस्तु, उनके चरित्रों के अनुरूप और अधीन रही है। टाइप चरित्रों के स्थान पर व्यक्ति चरित्र देने का ऐतिहासिक कार्य सर्वप्रथम जैनेन्द्र जी द्वारा सम्पन्न हुआ। उन्होंने ही सर्वप्रथम चरित्रों को नैतिक-अनैतिक के दल-दल से निकालकर मानव की स्वाभाविक भाव-भूमि पर प्रतिष्ठित किया। मानव उनके लिए सद् या असद् नहीं था, मात्र मानव था।
32 डॉ० इन्द्र नाथ मदान - आज के हिन्दी उपन्यास, पृष्ठ - 24
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