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पात्र चयन के विषय में जैनेन्द्र ने बड़ी सूझ-बूझ से काम लिया है। उनके कथा साहित्य की मूल संवेदना करुणा की है। वे अपने उपन्यासों द्वारा एक विशिष्ट दर्शन प्रतिफलित करना चाहते हैं। जैनेन्द्र ने अचेतन मन को बहुत महत्व दिया। उन्होंने पात्रों के अचेनत मन के चित्रण में भरपूर प्रयोग किया है। उनके पात्र साधारण नहीं असाधारण हैं। वर्गगत नहीं विशिष्ट हैं। जैनेन्द्र के पात्र अचेतन से परिचालित होते हैं। पात्र के मन मे कोई न कोई ग्रन्थि या अतृप्ति रहती है। शची रानी गुर्टू का मत है कि 'जैनेन्द्र के पात्रों की कहानी x x x x x परिस्थितियों से जूझने वाले व्यक्तियों, उनके परिवेश और सामाजिक सम्बन्धों की कहानी न होकर कुण्ठा ग्रस्त और किसी एक वृत्ति या मूड के वशीभूत आत्म केन्द्रित लोगों की कहानी है। 'परख' के पात्रों की मनोवैज्ञानिक अर्थ में कोई ग्रन्थि नहीं है। यह ग्रन्थि युक्त पात्र-परम्परा ‘सुनीता' से प्रारम्भ होती है। 'सुनीता' में मनोवैज्ञानिक शब्दावली का स्पष्ट प्रयोग है। श्रीकान्त के शब्दों में हरि की आत्मा में कहाँ गाँठ पड़ी है कि वह अतळ होता x x x x x जैसे अपने भीतर भेद को पाल रहा है x x x x x क्या उसे भरमा रही है x x x x x x 'कल्याणी' में लेखक श्रीधर का परिचय देते हुए कहता है कि उसमें गाँठ नहीं है। सुखदा विवाह पूर्व भावी पति के विषय में कल्पना चित्र बनाती है कि उनकी आमदनी सात सौ रूपये होनी चाहिए। मोटर तो पास होना अनिवार्य ही है। परन्तु थोड़े दिन बाद विवाह हुआ तो उनका वेतन कुल डेढ़ सौ ।
___ जैनेन्द्र ने चरित्र-चित्रण के अन्तर्गत अचेतन में सक्रिय रहने वाली मूल प्रवृत्तियों का उपयोग किया है। उनके अधिकांश पात्रों के
33 शची रानी गुर्दू - जैनेन्द्र का मनोवैज्ञानिक अतिवाद (लेख) - साप्ताहिक हिदुस्तान. 16 मार्च 1958 34. जैनेन्द्र कुमार – सुनीता, पृष्ठ - 103 35. जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ-10 36 जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ - 10
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