________________
वास्तव में शिल्प को अनुवाद या पर्याय मान लेना बहुत स्वस्थ प्रवृत्ति का द्योतक नहीं है । शिल्प न टेकनीक का अनुवाद है, न क्राफ्ट का। यह अपनी आत्मा, अर्थ और रूप में शुद्ध भारतीय है। इस शब्द में साहित्यिक कृतियों तथा अन्य सर्जक कला-कृतियों के सौन्दर्य को आँकने, कलात्मक सौन्दर्य का निमित्त कारण बनने, उस हेतु सामग्री-सम्पादन तथा विधियों के आकलन के अर्थ की व्यंजना देने की पूरी क्षमता है। वास्तव में दूसरी भाषा के शब्द का पर्याय बनकर कोई भी शब्द एक सीमा के बाद अर्थ वहन करने में असमर्थ हो जाता है। शब्द की भी अपनी आत्मा, अर्थ दीप्ति तथा अर्थच्छाया होती है। शिल्प शब्द जैसी व्यापकता तथा अर्थ गम्भीरता अन्य विदेशी शब्दों में नहीं हैं। अतः शिल्प शब्द के लिए विदेशी शब्द का प्रयोग करना न्याय-संगत नहीं प्रतीत होता। जैनेन्द्र जी के साहित्य में शिल्प का सहज एवं स्वाभाविक रूप से निर्वाह हुआ है। अतः जैनेन्द्र जी की शिल्पगत चेतना का । विश्लेषण करना आवश्यक है।
कथा वस्तु-शिल्प
जैनेन्द्र कुमार ने सदैव रूढ़िगत परम्पराओं से अपने को अलग रखकर युगानुकूल स्वस्थ परम्पराओं को डालने में पथ-प्रदर्शक का कार्य किया है। उन्होंने जहाँ उन सामाजिक मान्यताओं को, जो रूढ़ि बन कर हमारे प्रगति में बाधक हो रही थीं, विरोध किया है वहीं पर उन्होंने घिसी-पिटी चली आ रही शिल्प–परम्परा को भी नया आयाम प्रदान किया है । अपनी मौलिक शैली के सन्दर्भ में उन्होंने ‘परख' में स्वयं स्पष्ट किया है- 'मैंने इसमें काफी स्वतन्त्रता से काम लिया है। पर विश्वास है उसका दुरूपयोग नहीं किया। क्या कहूँ और कैसे कहूँ इन दोनों बातों में मैने किसी नियम को सामने नहीं रखा है-न भाषा
[162]