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के पौरूष को ललकारने का प्रतीक हैं। हरि प्रसन्न में 'स्त्री सम्बन्धी नपुसंकता को दूर करने के लिए सुनीता का यह संकेत विशेष मनोवैज्ञानिक महत्व लिए हुए है ।
‘त्यागपत्र' में मृणाल प्रधान पात्र है, उसके पुरूष पात्रों में केवल प्रमोद ही मुख्य है। प्रमोद में बुआ के लिए आत्मीयता है, उसी सूत्र में बँधा हुआ वह कभी अपनी माँ से और कभी फूफा से लड़ने को तत्पर हो जाता है। वह महसूस करता है कि दोनों पात्रों का स्वभाव उसकी बुआ के लिए अच्छा नहीं है। उसकी बुद्धि में बुआ की खातिर कुछ करने के विचार बारम्बार आते हैं, किन्तु सामाजिकता में जकड़े होने के कारण प्रमोद मनोवैज्ञानिक धरातल पर मृणाल की कहीं भी सहायता नहीं कर पाता । बचपन में माता-पिता के भय के कारण बुआ पर होने वाले अत्याचारों को देखकर भी सहन करता है। उस परिस्थिति में वह दौड़-दौड़कर बुआ का कोई भी कार्य कर देने में राहत महसूस करता है। शायद इसी से बुआ को कुछ सन्तोष प्राप्त हो सके । शीला के भाई से डॉट खाकर भी चुपचाप सह लेता है। दूसरी बार कोयले वाले के यहाँ जब वह बुआ से मिलता है, तो बुआ को असामाजिक कृत्यों के कारण उबार सकने का साहस नहीं जुटा पाता और तीसरी बार विवाह के सिलसिले में, जिस में लड़की देखने जाता है, वही बुआ सामान हो जाने पर वह उसे पुनः अपने अच्छे समाज में ले चलने का प्रस्ताव करने की हिम्मत करता है, तो आत्मव्यथा तथा सत्याग्रह की भावनाओं में मग्न संसार के सभी दुःखों को अपने अन्दर खींच लेने की साध लिए स्वयं मृणाल प्रमोद के साथ जाने को प्रस्तुत नहीं होती। वास्तव में प्रमोद की बुआ के प्रति आत्मीयता की मनोवैज्ञानिक चेतना तो बारम्बार मृणाल को उबार लेने को कचोहटी है, किन्तु जीवन का सामाजिक यथार्थ सदैव उसकी चेतना पर प्रतिबन्ध लगा देता है । मन के इसी द्वन्द्व से परेशान होकर वह अपने पद से त्यागपत्र दे देता है।
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