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यह समझता था कि हरि प्रसन्न के सन्यासी जीवन व्यतीत करने का प्रमुख कारण स्त्री सम्पर्क का अभाव ही था। सुनीता के एकान्त सम्पर्क के लिए वह कहीं दूर जाने का बहाना बनाकर घर से चला जाता । उस एकान्त में सुनीता का यौवन एवं मादकता उसमें पौरुष उत्पन्न करने का माध्यम बनता है, किन्तु वह इस स्थित से बचने के लिए और साहस न कर पाने के लिए सुनीता को क्रान्ति दल की विजयी शक्ति बनाकर एकान्त जंगल में अपने स्थान पर लाता है। जंगल में उसके स्थान पर पुलिस आ जाने के कारण, हरि प्रसन्न और सुनीता वही कहीं छिप जाते हैं। चाँद की रोशनी में सुनीता का सौन्दर्य हरि प्रसन्न को विचलित कर देता है और सुनीता पति के आदेश का पालन करती हुई निर्वस्त्र होकर उसके प्रति समर्पण के लिए तत्पर हो जाती है। यह बिडम्बना हरि प्रसन्न की कठोरता को पराजित कर उसमें सामान्य पुरुष के भावों की स्थापना करती है और वह सुनीता को भोग्या न बनाकर सामाजिकता के लज्जायुक्त परिवेश में मुँह छिपाकर भाग खड़ा होता है।
मनोवैज्ञानिक चेतना के आधार पर हम हरि प्रसन्न की असाधारणता का कारण काम अमुक्ति न मानकर काम का परिचय मानते हैं । स्त्री की वासना से परिचित न होने के कारण उसमें स्त्री की कोमलता, करुणा, उदारता, त्याग आदि के लिए कोई लगाव न था । यही असाधरणता का आधार था। सुनीता की निकटता और समर्पण ने उसे धीरे-धीरे सामान्यता प्रदान की । वह समय भी आ गया जब वह सुनीता का सम्भोग चाहने लगा, किन्तु सामान्यता का विकास होने से हरि प्रसन्न वैसा साहस न कर सका। यहीं उसमें समष्टि चेतना पनपी थी। 'सुनीता' में रिवाल्वर प्रसंग एक विशेष प्रतीक सिद्ध हुआ है। सुनीता के द्वारा हरि प्रसन्न से पूछना कि क्या रिवाल्वर तुम्हारे पास है, क्या तुम चलाना जानते हो, यदि हां तो चलाकर दिखाओ, आदि बातें अपने आप में नारी के माध्यम से पुरुष
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