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________________ चक्र पर क्रोधित नहीं होते और न ही भाग्य से विद्रोह करना उचित समझते है। 'त्यागपत्र' में प्रमोद अपनी बुआ की स्थिति पर बहुत दुखी होता है, किन्तु बुआ को उस राह से मोड नहीं पाता। वह जानता है कि ईश्वर जो कुछ करता है, सोच-समझकर कर ही करता है। ईश्वर की इच्छा के विरूद्ध व्यक्ति कार्य करता है तो वह आत्मा के सन्तोष से भी पराजित हो जाता है। इसलिए वह कहता है कि 'जो कुछ हुआ ठीक हुआ, ठीक इसलिए कि उसे अब किसी भी उपाय से बदला नहीं जा सकता।' जैनेन्द्र भाग्य और दुःख के मध्य व्यक्ति की पारस्परिकता के हेतु बहुत सतर्क रहे हैं। जैनेन्द्र के अनुसार व्यक्ति स्नेह के आदान-प्रदान के द्वारा अतिशय पीड़ा को झेलता हुआ भी स्वर्ग का अधिकारी होता है। अतएव भाग्य में जो होना है, उसे टाला तो नहीं जा सकता। होनी होकर रहती है और उसको टालना व्यक्ति के द्वारा सम्भव नहीं है बल्कि उसका परिवर्तन ईश्वर द्वारा ही सम्भव है। जैनेन्द्र ने 'त्यागपत्र' में स्पष्ट शब्दों में लिखा है- 'स्नेह - क्या वह स्वयं में इतना पवित्र नहीं है कि स्वर्ग के द्वार उसके लिए खुल जाएँ। 20 'विवर्त' में भी भुवनमोहिनी रेल दुर्घटना के लिए जितेन को दोष नहीं देती । उसका विश्वास है कि ‘होता होनहार है और सब काल कराता है।21 मोहिनी जितेन को समझाती हुई कहती है-'जो हुआ हो गया। होनहर कब टला है। 2 ‘सुखदा' में सुखदा अपने पति को किसी कार्य के लिए दोष नहीं देती और कहती है-'उन्होंने कुछ नहीं किया। सब भाग्य के आधीन हुआ है। 23 20 जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र, पृष्ठ-46 21. जैनेन्द्र कुमार - विवर्त, पृष्ठ-29 22. वही, पृष्ठ - 30 23 जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ -204 [133]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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