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आदर्श जीवन मूल्य : एक मूल्यांकन
जैनेन्द्र कुमार एक आस्थावादी कथाकार हैं जो जीवन में सदाचार और संयम को सदा महत्व प्रदान करते रहे हैं। वे कभी भी अपने कथा-साहित्य में नैतिकता की अवहेलना नहीं करते। जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य में अनेकोन्मुखी चित्रण के साथ मनुष्य की नैतिकता, सदाचार तथा वैयक्तिक गुणों की उपयोगिता चित्रित है। लेखक का कार्य उपदेश देना नहीं होता, उसको चाहिए कि विभिन्न प्रकार के पात्रों के माध्यम से मनुष्य के जीवन में अनुभूत कष्ट, विपत्ति, वियोग की पीड़ा आदि मानवीय भावनाओं को स्पष्ट करे। अपने इस दायित्व का निर्वाह यदि वह कर ले जाता है तो वह निश्चित रूप से साहित्य साधन है। जैनेन्द्र जी ने अपने इस दायित्व का पूर्ण निर्वाह किया है।
जैनेन्द्र जी के लेखन कार्य के प्रारम्भ के समय में ही सामाजिक तथा राजनैतिक आन्दोलनों ने नैतिक रूप ले लिया था। गाँधी जी के अहिंसा, सदाचार, ब्रह्मचर्य सम्बन्धी विचार, मनुष्य का परिष्कार करने वाले आदर्श प्रस्तुत कर रहे थे, जिसका संस्कारगत प्रभाव जैनेन्द्र के मानस पटल पर अंकित हुआ। 'परख' में सत्यधन, 'सुनीता' में हरि प्रसन्न, ‘त्यागपत्र' की कल्याणी आदि सभी ऐसे पात्र हैं जो जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य के आदर्श जीवन मूल्यों के युगानुकूल आलोक स्तम्भ कहे जा सकते हैं। निष्कर्ष रूप से स्पष्ट कहा जा सकता है कि जैनेन्द्र जी ने अपने कथा साहित्य में एक कथाकार के दायित्व का निर्वाह करते हुए आदर्श जीवन मूल्यों की विशद अभिव्यंजना की है और आदर्श जीवन मूल्य ही हमारी भारतीय संस्कृति की धरोहर हैं।
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