SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (खण्ड -2) जैनेन्द्र के कथा साहित्य में धार्मिक चेतना जैनेन्द्र की धार्मिक दृष्टि जैनेन्द्र का जीवन अध्यात्म और भौतिकता का सामंजस्य है। धर्म का अस्तित्व जीवन के सत्य में ही संभव है और जीवन की सार्थकता धर्म में लगे रहने पर ही है। जैनेन्द्र का कथा साहित्य उनके व्यक्तिगत अनुभव का ही प्रतिरूप है। उनकी धार्मिक दृष्टि किसी मत या वाद से जुड़ी नहीं है। उन्होंने वेद, पुराण आदि धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन नहीं किया, किन्तु धर्म का जो रूप आदिकाल से विश्व के सभी धर्मों में प्राप्त होता है, वह सभी उनके साहित्य में सहज रूप में ही देखने को मिलता है। जैनेन्द्र ने धर्म को ज्ञान से नहीं, बल्कि अनुभव से प्राप्त किया है। उनका धर्म मानव धर्म की संज्ञा से विभूषित किया जाता है। धर्म के इस विस्तृत रूप के अन्तर्गत जीवन के विभिन्न अंगों का समावेश हो जाता है। उनके कथा साहित्य में धर्म का अस्तित्व उसी प्रकार लक्षित होता है जैसे दूध में मक्खन या पुष्प में सुगन्ध। जैन धर्म जैनेन्द्र का साहित्य उनके युग की परिस्थितियों और संस्कारों का ही परिणाम है। जबकि जैनेन्द्र स्वयं को सभी बन्धनों से अलग मानते हैं, किन्तु यह सम्भव नहीं है कि मनुष्य नितान्त निरपेक्ष हो जाए। व्यक्ति का जीवन और उसके विचार नितान्त नवीन नहीं हो सकते। उनके धार्मिक विचार किसी नवीन आदर्श की स्थापना नहीं [98]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy