________________
इस प्रकार जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य में व्यक्तिवादी विचार दर्शन मिलता है। जैनेन्द्र जी को व्यक्तिवादी विचार-दर्शन का जन्मदाता कहा जा सकता है। जैनेन्द्र जी का सम्पूर्ण साहित्य व्यक्ति के विकास में गतिरोध तथा शून्य स्थिति की अभिव्यक्ति नहीं करता है। जैनेन्द्र जी ने एक प्रकार का जड़वादी विचार दर्शन प्रस्तुत किया है, उनके इस विचार दर्शन को व्यक्तिवादी दर्शन कहना अधिक उचित लगता है। उन्हें केवल सामाजिक सन्दर्भो में ही व्यक्तिवादी कहा जा सकता है।
विविध
सांस्कृतिक अध्ययन एवं विश्लेषण क्रम में अब तक के समस्त विवेचना के बावजूद कुछ आवश्यक बातें बच जाती हैं जिनका संस्कृति से अनिवार्य रूप से सम्बन्ध है। इसलिए सांस्कृतिक चेतना के विवरण में उनकी उपादेयता असंदिग्ध है। खानपान, वेशभूषा, आचार-विचार, रीति-रस्म आदि प्रमुख हैं, जिनका विवेचन यहाँ अपेक्षित है।
खान-पान
संस्कृति जीवन की समग्रता का सामंजस्य है और खान-पान जीवन का आवश्यक अंग है। अत: उसका सम्बन्ध संस्कृति और सभ्यता से अभिन्न रूप से होता है। इतना ही नहीं प्राचीनकाल से लेकर आज तक मनुष्य के जीवन में घटित विकासों का अध्ययन खान-पान के आधार पर किया जा सकता है। वह समय मनुष्य सभ्यता की चरमोपलब्धि का रहा होगा, जब मनुष्य ने शिकार के लिए औजार बनाना सीखा और कच्चे मांस को भूनकर खाना शुरू किया। आज के युग में खाने के विभिन्न पदार्थ हैं और खाने के विभिन्न ढंग
[93]