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जीवित चित्र यदि किसी कथाकार के साहित्य में मिलता है, तो वह निश्चित ही जैनेन्द्र कुमार हैं। हम उनके साहित्य में गाँव की सैर कर सकते हैं।
जैनेन्द्र कुमार का ऐसा कोई उपन्यास नहीं है, जिसमें समग्र रूप से सामान्य जन-जीवन और ग्रामीण संस्कृति का चित्रण न हुआ हो । 'परख' का सम्बन्ध उत्तर प्रदेश की ग्रामीण, भोली-भाली नायिका से है । वह बाल विधवा है। ग्रामीण संस्कृति में जमींदारों, महाजन, किसानों आदि सभी को उन्होंने अपने कथा साहित्य में स्थान दिया है। 'परख' में बिहारी पढ़ने के लिए शहर जाता है, लेकिन वहाँ के जीवन से ऊबकर फिर गाँव वापस आ जाता है। सत्यधन अपने गॉव में पड़ोसिन बाल-विधवा कट्टो को पढ़ने में सहायता करता है। 'व्यतीत' में जयन्त चन्द्री को साथ लेकर कश्मीर जाता । अपनी पत्नी से रूठकर वह पहलगाम में अपने को रिझाना चाहता है। जैनेन्द्र जी के 'परख' उपन्यास में ही ग्रामीण संस्कृति और गाँव के वातावरण का सजीव चित्रण मिलता है।
नगर संस्कृति
जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य में नगरों का भी अत्यधिक वर्णन हुआ है। अधिकतर उपन्यासों और कहानियों में दिल्ली का वर्णन है और इस नगर का उल्लेख कथा साहित्य में कहीं न कहीं अवश्य मिल जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य जगहों के नाम भी हैं, यथा- 'सुनीता' में प्रयाग तथा लाहौर नगरों का उल्लेख है । 'जयवर्धन' तथा 'अनन्तर' आदि परवर्ती उपन्यासों में घटना चक्र में कई अन्य नगर भी चपेट में आ गये हैं, हस्तन बम्बई में उतरता है । मुक्ति 'बोध' तथा 'अनन्तर' में दिल्ली के अलावा बम्बई, नैनीताल, अहमदाबाद तथा माउण्टआबू नगर भी उल्लिखित हैं। इनके बाद इसी उपन्यास 'मुक्तिबोध' तथा 'अनन्तर'
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