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संस्कृति तथा सभ्यता को पर्यायवाची मानते हैं।' तो मैलिनावस्की उनका अलग-अलग अस्तित्व स्वीकार करते हैं, क्योंकि उनके अनुसार ऊँची संस्कृति के खास पहलू को सभ्यता कहते हैं। टायलर की तरह हर्स कोविट्स का भी कहना है कि सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे के पर्याय हैं। वह कहते हैं कि संस्कृति के लिए एक शब्द है “परम्परा' और दूसरा ‘सभ्यता' । संस्कृति के द्वारा ही किसी समाज की जीवन शैली का निर्माण होता है। डॉ० राधा कृष्णन के अनुसार संस्कृति, विवेक-बुद्धि से जीवन को भली प्रकार जान लेने का नाम है। डॉ० रामधारी सिंह 'दिनकर' के शब्दों में-'संस्कृति जीवन का तरीका है, यह तरीका जमा होकर उस समाज पर छाया रहता है जिसमें हम जन्म लेते हैं। इस प्रकार सामाजिक चेतना की समग्रता का सर्वोत्तम निर्वाह ही, जिसमें वैयक्तिकता विकार मुक्त होकर साधनाओं का श्रेष्ठ आकलन करती है, संस्कृति है।'
संस्कृति की परिभाषा
जहाँ तक संस्कृति को परिभाषित करने की बात है, हम निःसंकोच यह स्वीकार करते हैं कि आज तक इस बात पर विद्वानों में मतैक्य नहीं स्थापित हो सका है। जितने तरह के संगठन हैं और जितने तरह के लोग हैं, उन सबों ने उतनी ही तरह से संस्कृति को परिभाषित करने का प्रयास किया है। वस्तुतः संस्कृति को समझने और परिभाषित करने के लिए संस्कृति की व्याख्या सम्बन्धी लम्बी परम्परा को जानना नितान्त आवश्यक है। बिना उन पूर्व व्याख्याओं
1 ई० टाइलर - प्रिमिटिव कल्चर, भाग-1. पृष्ठ -1 2 इनसाइक्लोपीडिपा आफ द सोशल साइन्सेज, भाग-3. पृष्ठ – 621 3 एम०जे० हर्स कोविट्स - मेन एण्ड हिज वर्क्स, पृष्ठ - 17 4 अनु० विश्वम्भर नाथ त्रिपाठी - स्वतन्त्रता और संस्कृति, पृष्ठ-53 5 डॉ० रामधारी सिंह दिनकर' - संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ-653 6 डॉ० सरनाम सिंह शर्मा - साहित्य सिद्धान्त और समीक्षा, पृष्ठ - 14
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