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को जाने समझे हम संस्कृति को सही अर्थों में समझ पाने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। संस्कृति पर विभिन्न विद्वानों ने अपने मत प्रकट किए हैं। डॉ० राधा कृष्णन के अनुसार संस्कृति विवेक-बुद्धि से जीवन को भली प्रकार जान लेने का नाम है ।' डॉ० रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में, संस्कृति जीवन का तरीका है यह तरीका जमा होकर उस समाज पर छाया रहता है, जिसमें हम जन्म लेते हैं। इस प्रकार सामाजिक चेतना की समग्रता का सर्वोत्तम निर्वाह ही, जिसमें वैयक्तिकता विकार विमुक्त होकर साधनाओं का श्रेष्ठ आकलन करती है, संस्कृति है । यह संस्कृति मानव की विविध साधनाओं में निहित होती है। 1° संस्कृति मानव के सम्पूर्ण व्यवहार का एक ढ़ांचा है जो अंशतः भौतिक पर्यावरण से प्रभावित होता रहता है। समाज के बिना संस्कृति जीवित नहीं रह सकती और यही कारण है कि प्रत्येक मानव समाज की अपनी संस्कृति होती है ।
संस्कृति का स्वरूप
संस्कृति और समाज एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबद्ध हैं । सांस्कृतिक विकास सामूहिक प्रयत्नों के परिणाम हुआ करते हैं । यही कारण है कि संस्कृति का विकास मन्थर गति से होता है। संस्कृति परम्परागत आचार-विचार और भौगोलिक परिवेश से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती । यद्यपि परम्परागत उदात्त विचारधाराओं का युगानुकूल संस्कार होता रहता है, तथापि संस्कृति नूतन नहीं है, क्योंकि संस्कृति का अस्तित्व नूतन और पुरातन अनुभूतियों के संस्कारों द्वारा निर्मित समुदाय के दृष्टिकोण में निहित है। संस्कृति
7 अनु० विश्वम्भर नाथ त्रिपाठी - स्वतंत्रता और संस्कृति, पृष्ठ – 53
8 डॉ० रामधारी सिंह 'दिनकर' - संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ - 653 9. डॉ० सरनाम सिंह शर्मा - साहित्य सिद्धान्त और समीक्षा, पृष्ठ - 14 10. डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी - अशोक के फूल (निबंध संग्रह), पृष्ठ - 13
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