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________________ अध्याय-3 जैनेन्द्र के कथा साहित्य में सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक चेतना (खण्ड-1) जैनेन्द्र के कथा साहित्य में सांस्कृतिक चेतना संस्कृति : शब्द एवं आशय जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य के सांस्कृतिक अध्ययन के सन्दर्भ में यह आवश्यक और समीचीन जान पड़ता है कि पहले हम संस्कृति के स्वरूप पर एक दृष्टि डाल लें। ऐसा करना इसलिए अनिवार्य प्रतीत होता है, क्योंकि संस्कृति को स्पष्ट किए बिना अध्ययन पद्धति का स्पष्टीकरण सम्भव नहीं जान पड़ता। संस्कृति पर विचार करने के साथ ही साथ हमें सभ्यता के स्वरूप पर भी विचार करना अपेक्षित है। वस्तुतः संस्कृति और सभ्यता का सम्बन्ध इतने निकट का है कि एक पर विचार करते समय दूसरे की उपेक्षा नहीं की जा सकती। 'संस्कृति' और 'सभ्यता' इन दोनों शब्दों का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में होता है, लेकिन ये दोनों मनुष्य की प्रगति तथा उसकी उपलब्धियों को संकेतित करते हैं। विद्वानों में इन दोनों शब्दों को लेकर जटिल तथा विवादास्पद स्थिति रही है, जिसमें कभी तो उन्हें अलग-अलग तथा कभी पर्यायवाची तक मान लेने का आग्रह व्यक्त किया गया है। प्रसिद्ध नर विज्ञानी टायलर [72]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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