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जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवाँ भाग] मत बुलाओ। कुछ फायदा नहीं है । और तुम सब लोग यहाँ आयो। मेरी एक बात सुनो। मैं बहुत नहीं करूँगा, बस, वह...मान लेना। मैं सुखी हो जाऊँगा और तुम्हारा अहसान मानूगा । और चला जाऊँगा।
चाचा के लौटने पर यह सब बातें उन्हें समझा दूगा । और बड़ी अच्छी बात होगी कि डालचन्द भी उनके साथ होंगे । वह मेरी बात अवश्य मान लेंगे। मरते हुए के जी की एक बात नहीं मानेंगे ? वह जरूर मान लेंगे। बस ! ___ इतना कहकर प्रमोद चुप हो रहा । हम सब चुप बैठे थे। चुप बैठे-बैठे एक-दो-तीन मिनट हो गये । चौथा बीतने लग गया। यह प्रमोद क्यों यों चुप होकर कुर्सी पर आ बैठा है । फिर क्या हुआ, कहता क्यों नहीं । हारकर इस सन्नाटे को तोड़कर प्रेमकृष्ण ने कहा, "फिर ?"
प्रमोद ने कहा, "फिर क्या, बस ।”
प्रेमकृष्ण ने झल्लाकर कहा, "अरे तो फिर क्या हुआ ? लौटकर आये, डाक्टर आये, फिर कैसे हुआ ?"
प्रमोद ने हँसकर कहा, "बस, कहानी खतम हो गई। होना-जाना क्या था।"
प्रेमकृष्ण ने और भी खीझकर कहा, "तो तुम यहाँ कैसे बैठे हो ? ठीक बताओ, क्या हुआ, तुम कैसे बच गये ?"
प्रमोद ने कहा, "बच कहाँ गया, मर गया। मरकर फिर जी गया और अब यहाँ आ गया हूँ।" , ___प्रेमकृष्ण ने कहा, "क्या फजूल बकते हो जी ! ठीक बतायो, फिर क्या हुआ, क्या नहीं ? फिर तुम बच कैसे गये ? बड़ा होशियार डाक्टर होगा, या उस डालचन्द को जहर देना नहीं आया होगा।"
प्रमोद ने कुछ और झिकाकर कहा, "अच्छा, बता ही दू?" सबने बताये जाने की इच्छा प्रकट की।
प्रमोद ने कहा, "वहाँ से बच गया, तो यहाँ पाप लोग मुझे नहीं मारने लगेंगे ?"