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मौत की कहानी
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हुआ कि मैं अपना दिन-भर चाची के पास बिताने को खाली पाने लगा। चाची भी मेरे साथ बात-चीत करने को अपने को खाली पाने लगीं। वह होंगी कोई २२-२३ वर्ष की, पढ़ी-लिखी अच्छी थीं और समझदार तो...
प्रेमकृष्ण ने बीच ही में कहा, "अब इतनी देर में आई कहानी ! हाँ, पढ़ी-लिखी थीं, और कैसी थीं ?"
प्रमोद का स्वर भारी हो पाया। उसने कहा, "कहानी आई नहीं, उनके साथ तो कहानी गई । वह अब नहीं हैं। मैं फिर दुबारा उनके घर पहुँचा, तो शव देखने पहुँचा । मैं समय पर पहुँच जाता, तो प्राशा है, वह मरने न पातीं। वह मुझे बहुत प्यार करती थीं । अपने बेटे को भी इतना न करती होंगी।"
प्रेमकृष्ण चुप हो रहे । प्रमोद ने रूमाल मुह पर फेर कर कहना जारी रखा____ "वह बड़ी स्नेहशीला थीं। सबको वह प्यार करती थीं। मैं उनकी बातों को सुनकर अघाता न था; क्योंकि उन सब में उनका स्नेह बहता रहता था। वह अक्सर लाला-देवर-का जिक्र करती थीं। घण्टों हो जाते, लाला की बातों का पार न पाता । उनका अतीत लाला-लाला-लाला से भरा था। एक पग भी उसमें रखतीं कि लाला की किसी-न-किसी बात-से आ ठकरातीं। वह बात फिर जी में विद्रोह मचाती हुई उमड़ आती। और उसके बाद सिलसिला बाँधकर लाला की मूर्ति के साथ जुड़ी हुई और-और सब बातें भी, सिनेमा-चित्रों की भाँति आकर फिरती हुई चली जातीं, और उसी प्रकार कतार बाँधकर आँसू भी ढुलकते चले आते। __मैं कुछ वैसे ही एक बार के साक्षात्कार से, स्वर्गीय छोटे चाचा के प्रति कुछ आर्द्र भाव रखता था। अब वे अत्यन्त कोमल और अत्यन्त दृढ़ हो गये । मैंने उनके चित्र को अपने सामने बिलकुल प्रत्यक्ष कर लिया। उनके जीवन और मृत्यु के प्रत्येक विवरण से मैंने अपने को अवगत कर लिया।