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जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवाँ भाग ]
इधर चाची सुनाया करती थीं, उधर शाम को मौका पाकर चाचाजी वही अपने छोटे भाई की हत्या का हाल सुनाते थे ।
जिन्होंने उनके भाई की हत्या की, उन सबके नाम वह जानते हैं । इस बारे में उन्हें बिलकुल ही सन्देह नहीं है । प्रमाण असन्दिग्ध हैं । पर लाख कोशिश करने पर भी उनमें किसी को भी सज़ा न मिल सकी । गाँव का गाँव जो विपक्ष में होकर, एक बन बैठा है, उसके कारण गवाह नहीं मिल पाते हैं, यह अँधेरखाता है ।
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जिन-जिनके नाम बताये गए कि इन्होंने उस हत्या में भाग लिया था, वे मेरे अपने-आप दुश्मन बन गए। उनमें डालचन्द का नाम और उसका भाग प्रमुख था । पहले उसी ने लाठी मारी थी, इस बारे में काफी सबूत चाचा पा चुके हैं। इसमें कोई शक है ही नहीं । उस क्रूर ने गिरने पर भी कई लाठियाँ मारी थीं। वही छोटे चाचा का हत्यारा है । यह भी पता चला था, कि वह अभी तक इनका कर्ज़दार है और उस सिलसिले में जब कभी मिलता है, बड़ी भलमनसाहत से मिलता है । बड़ा विनीत बन जाता है । व्यवहार चलन में बड़ी मिली भगत रखता है । आये गये नेग-काज पर चाचा के यहाँ न्यौता तक भेज देता है । बात मीठी करता है, पर भीतर छुरी है। पास एक गाँव है, उसका चार आना मालिक है | बड़ा रोबवाला और रसूखवाला आदमी है; पर एक नम्बर का बदमाश है । कम्बख्त किसी तरह हाथ नहीं आता ।
इसके बाद परसादीलाल, माधोराम के भी नाम आते थे। उन्होंने भी अपने मन की करने में कसर नहीं की है । वे सब लोग मौका पाएँ, तो हमारे घर के हरेक आदमी को मार डालें। जैसे-तैसे बड़े ढब से, यह तो चाचा बच रहे हैं; नहीं तो मौके की तलाश में रहते हैं । चूकने वाले नहीं हैं ।
इन सब बातों से मैं बड़ा सशंक होकर रहता था । यह डालचन्द नाम का आदमी कैसा है, कौन है, यह जानना चाहता था, फिर भी नहीं जानना चाहता था । वह मालूम कर ले, कि में इनका रिश्तेदार हूँ, तो