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कुछ उलझन
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सम्बन्ध में चेता दा । उन्हें बता दो कि मैं पतिव्रता नहीं हूँ। मैं तुम्हारा अहसान मानूंगी। ____ या तुम्ही बताओ, क्या हो ? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम यहाँ प्रायो ? मैं कभी-कभी सोच उठती हूँ कि हम दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर उनके सामने चलें और में उनसे कहूँ कि 'सुनो जी, ब्याह से पहले मैं लिली थी, यह आनन थे । ब्याह को लेकर हम दोनों के बीच में तुम आ गये। लेकिन मैं जानती हूँ, तुम महान् हो, तुम किसी के बीच में आना नहीं चाहोगे। तब सुनो, क्या हम दोनों तुम्हारी इजाजत से अब फिर वैसे ही नहीं हो सकते ? तुम क्यों पति बनते हो ?--क्योंकि तुम तो मेरे पूज्य हो।' सदानन्द, मुझे लगता है कि मैं तो इस तरह की कोई बेवकूफी कर बैठ भी सकती.हूँ, क्योंकि मेरे भीतर तुम नहीं जानते कैसी यातना है । लेकिन, उनके चित्त को चोट देने की कल्पना पर ही मैं सिहर जाती हूँ। ओ राम, मेरे पति जरा भी नालायक क्यों नहीं हैं ? सदानन्द, मुझे बचायो । मैं तुम्हारे साथ विलास में भी जा सकती हूँ, नरक में भी जा सकती हूँ, जङ्गल में भी जा सकती हूँ, तुम्हारे साथ दुनिया की कुत्सा को भी मैं झेल लूगी, लेकिन यह जो मुझे स्वर्ग में रख रहे हैं, यह मुझसे नहीं मिलता। यह स्वामी का अकपट स्नेह, यह सर्वसन्तुष्ट गृहस्थी, यह स्वर्ग मुझे निरन्तर काटता है। ___ मैंने इस पांच हजार रुपये की बात पर उन्हें खूब कहा-सुना है । कि रुपया-पैसा उड़ाना ही तुम्हें आता है । पालन-पोषने के लिए गृहस्थी में तो जैसे कोई है ही नहीं। बस, मित्रों में ही वह खर्चा जाता है। मैं रूठी हूँ, मैं झींकी हूँ, मैने न कहने लायक कहा है । पर वह मुस्करा देते रहे हैं, कह देते रहे हैं कि 'सदानन्द को तुम जानती नहीं हो ।' उस समय जी होता है कि उन्हें गाली देकर अपना सिर फोड़ डालू, पर सब सहकर चुप हो गई हूँ और सदानन्द, पाँच-हजार क्या, कुछ भी वह तुम पर वार देंगे। सदानन्द तुम मेरी विपता समझते तो हो। बताओ, यह सब मैं कैसे सहँ ? अपनी क्षुद्रता को मैं ऊपर लाकर दिखा देना चाहती हैं, पर