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___ जैनेन्द्र की कहानियां [सातवां भाग] पति की अनायास महत्ता के नोचे कुचली जाकर वह मेरी क्षुद्रता अत्यन्त सन्त्रस्त है । सदानन्द, मुझ क्षुद्र को यहाँ से उबारो । मुझे इस स्वर्ग से तोड़ कर चाहे कहीं भट्टी में झोंक देना । मैं वहाँ सुखी रहूँगी। सदानन्द, प्रायो। बतायो, मैं क्या करूँ ? क्या करूँ ?
तुम्हारी लिली
बम्बई, १ नवम्बर श्याम,
क्षमा करना, मैं इस बीच तुम्हें पत्र न लिख सका । कुछ उलझा रहा । अब सुनो, मैं तीन तारीख को लखनऊ पहुँच रहा हूँ । नहीं, दलील न करो। मैं बम्बई नहीं रहूँगा। और अपने बाकी बचे चार हजार रुपये तुम चुपचाप ले लोगे,-समझे ? चाहो तो उन्हें फेंक देना। पर अब मैं तुम्हारे खातिर भी वह रुपया न ले सकूँगा।
तुम्हारी धर्मपत्नी लीलावतीजी को मैं जानता हूँ। उन्हें मेरा प्रणाम कहना और कहना मैं तीन तारीख को घर पहुंच रहा हूँ।
हाँ, एक खबर है । अभी पढ़ने को मिला, वर्मा ने आत्म-घात कर लिया है। वर्मा और आत्म-घात ? अखबार की कटिङ्ग साथ भेजता हूँ। पढ़कर मन सन्न रह जाता है । श्याम, इस अजब दुनिया में आदमी भी अजब जानवर है ! शेष मिलने पर।
तुम्हारा
सदानन्द