________________
कुछ उलझन
__ मैंने हँस कर कहा, "अरे भाई, वह जोगी-ध्यानी हैं। विवाह आदि के बखेड़ों में उन्हें क्या राग है ?"
इस पर वह कुछ नहीं बोलीं और चली गई । पर तीसरे पहर मैं अकेला था। उन्होंने आकर कहा, "बम्बई में वह ठहरेंगे कहाँ ? मुझे उनका पता देना। मैं उन वैरागी को आने को लिखू गी । लिख दू?"
मैंने कहा, "क्यों नहीं, जरूर लिखो। मेरी तरफ से भी लिख देना, जरूर आवें।" ____ उसके जवाब में उन्होंने कहा, "तुम्हारी तरफ़ से मैं क्यों लिखूगी ? में अपनी तरफ से लिखूगी। बोलो, नहीं लिख सकती ?"
मैंने कहा, "अरे-अरे, जरूर लिख तकती हो।"
सो भैया, तुम्हारा पता मैंने उन्हें दे दिया है । शायद वह तुम्हें लिखें। सदानन्द, में उन्हें नहीं समझ पाता हूँ और तुम्हारी मदद चाहता हूँ। ___ वर्मा बम्बई में है ? मुझको मालूम नहीं था। कुछ और उसके बारे में पता चला ? मुझे उत्सुकता हुई है। बात यह है कि कहीं इस उम्र में आकर प्रेम के प्रति वर्मा खुला है । यह एक मित्र ने मुझे लिखा था। देर का नशा गहरा होता है । प्रेम भी इतने दिनों अपने दबे रहने, परास्त रहने का, उसे भरपूर प्रतिफल देगा। उन मित्र का अन्दाज था कि कुछ ऐसी ही बात है। कालेज में तो वर्मा को खेलों और सोसायटी में चमकने से फुसंत न थी। और अब जरा दुनिया के लिए वह खाली हुआ है तब प्रेम ने उस पर चोर-मार्ग से आकर धावा बोल दिया मालूम होता है । मुझे लगता है कि यही भेद उसके परिवर्तन के मूल में दुबका बैठा है। वर्मा की तत्परता, उसकी साहसिकता, उसकी प्रकृति का खुला खरापन, ये सब-कुछ इस प्रेम-व्यापार में उसके खिलाफ ही कहीं न पड़ जायें । देखिए, जरा उसकी खबरदारी भी रखिएगा। पत्र अवश्य देते रहिएगा। मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपका
श्याम