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जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवाँ भाग] राजीव अप्रत्याशित भाव से कह उठा, “यह तो बहुत ठीक बात है। डाक्टर ऐसा और रंग तुम्हारे पास है ?"
डाक्टर ने कहा, "जितना चाहो" और जेब में से आठ-दस पुड़ियों का बण्डल-सा निकाल कर सामने रख दिया !
"प्राधा-पाव गुनगुने पानी में एक पुड़िया डाल दो, बस, रंग तैयार । कई रंग की पुड़िया हैं ।"
अनायास राजीव ने पाँच-सात पुड़ियाँ उठा लीं, और उतनी ही शीशियाँ निकाल कर, उसने जादू का रंग तैयार कर लिया। और त्वराग्रस्त हो उसने कहा, "देखना डाक्टर, क्या बजा है ?" ____ “साढ़े-नी होने वाले हैं, पाँच-सात मिनट हैं। अच्छा, में चलू।"
और डाक्टर चले गए। ___तब मुह का गुलाल, धोकर साफ किया, शीशा देखा, बाल ज़रा ठीक किए और शीशियाँ होशियारी से जेब में संभाली । और राजीव लपक कर चला ऊपर । चुप ही चाप पहुँचा । देखा, भाभी बेफ़िकरी के साथ अन्दर के कमरे में पान बना रही हैं, और एक ट्रंक खुला पड़ा है। अचक, पैर रखता-रखता भाभी के पीछे वह पहुँचा और पहुँचते-पहुंचते तीन-चार शीशियों के मुंह खोल कर एक साथ कई रंग भाभी की साड़ी पर छिड़क दिए।
भाभी एक साथ चौंक कर मुड़ी, देखा, राजीव ! वह पहले तो शायद मुस्कराने को हुईं । राजीव को ऐसा भी लगा कि कहीं होशियारी से झपट कर उसके हाथ से शीशी ही उड़ा लेने वाली तो यह नहीं हो रही हैं ! किन्तु तत्क्षण फीकी और चिन्तित पड़ कर उन्होंने कहा, "नहीं जी, यह हमें अच्छा नहीं लगता।"
राजीव सामने हँसता हुआ खड़ा रहा। उसका मनसूबा था कि गुलाल की भी एक रेख भाभी के माथे पर लगायगा, पर कहने को वह हँसता रहा, लेकिन मन उसका जैसे एक साथ बँधकर खड़ा हो गया था।