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क्या हो ?
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पिता ने कहा, "सुषमा को तुम समझा दो बेटा, तो हमें तो खुशी ही होगी ।"
थोड़ी देर में माता-पिता आदि को कुछ काम निकल प्राया और एकान्त पाकर दिनकर ने पत्नी से कहा, "सुषमा मेरी एक बात सुन सकती हो ?" ...
ज़रूर सुन लेगी । सुनानो, वह चुप है
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'... मैंने तुम्हें दुःख ही दुःख दिया ।.. वह चुप है ।
"मैं कैसे कहूँ, तुम मेरी बात मानो; लेकिन मरते की एक बात यों भी मान लेते हैं । मैं ब मौत से कितनी दूर हूँ ? "
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सुषमा चुप ही है ।
"मैं सुषमा, यह जानता हुआ मरना चाहता हूँ
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दिनकर, ऐसी बात धीमी चाल से नहीं, झटपट कह डालो कि एक ही घूंट में वह गटक ली जाय । कैसी कड़वी बात कह रहे हो, सो टको नहीं; क्योंकि सुषमा चुप है और उसके भीतर मन भी है ।
"यह जानता हुआ मरना चाहता हूँ कि मैं अकेला मर रहा हूँअकेला।"
अरे, कहे जानो न, कहे जाम्रो । सुषमा चुप है ।
'अकेला । यह पक्का ज्ञान लेकर मरना चाहता हूँ कि मेरे मरने से तुम विधवा नहीं बनोगी ।...
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चुप ।
" कुलवन्त को तुम जानती हो..."
तब सुषमा ने घू ंघट के भीतर से ही आहिस्ता से कहा, "मुझे तुम एक ज़हर की पुड़िया दे जाओ, बस ।”
दिनकर एकदम भूला-सा हो गया । उसने सुना