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१६० . जैनेन्द्र की कहानियां [सप्तवा भाग] रहती है, हमारे पास तक आना कभी गवारा नहीं करती। हम तो इस दुनिया में कई दिन लेट होकर जिया करते हैं।"
प्रोफेसर ने बताया, "धरणी को प्राज सवेरे फाँसी लग गई। हिन्दुस्तान के जी की चोट की किसे फिकर है ? सब कोशिश, सब प्रदर्शन, सब अरदास व्यर्थ हुई।" ____ मैं सुनकर सन्न रह गया । यह नहीं कि हमारे प्रान्त का हर व्यक्ति महीनों से धरणी की फाँसी की खबर सुनने के लिए तैयार न रह रहा था। फिर भी जब वह एकदम घटित घटनो बन कर आई, तब उसकी भीषणता बेहद चोट देकर लगी। धरणी मुझ से पढ़ चुका और अच्छा छात्र था।
बात-बात में फिर प्रोफेसर ने बताया, "देखिए, वे दो स्त्रियां दीखती ह न, जानते हैं, कौन हैं ? इधर वाली उसकी पत्नी है, दूसरी उसकी बहिन । दुनिया में अब उनका कौन रहा है !"
मेरे मन पर जैसे वज्र पड़ा ।धरणी की पत्नी और बहिन ! ...और, मैं कह दिया करता हूँ, वीरेन आलोचक है !