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प्रेम की बात
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कष्ट देने में नहीं आई। पर तुम समझते हो कि उस मरे दिल्ली में अधिवेशन की अध्यक्षता करने में आई थी? फिर तुम भाग क्यों पाए ?" ____ मैंने कहा, "यह तुम्ही हो लीला ? बैठ जाओ। बड़ी मोटी हो
गई हो ?" .... बोली, "हां, मैं ही हूँ। चार बच्चों की मां होके मोटी न होऊँगी ?पर, एक बात तुम से पूछने इतनी दूर आई हूँ। इत्ते बरस हो गए हैं । तुमने मुझ से कभी कुछ नहीं चाहा । याद भी नहीं किया। उसकी सज़ा तो मैं पा ही रही थी। पर यह जो तुम चले आए हो, इससे कैसे न समझू कि बराबर मैं तुम्हारी याद में थी और कितना तुमने मेरे कारण दुःख पाया। यह जानकर मैं दिल्ली ठहर नहीं सकी और तुमसे माफी मांगने आगई हूँ। अब जो कहो-करूँ।" इतना कहकर लीला चुप हो गई।
और प्रसाद भी इतना कहकर चुप हो रहा ।
हमने खीझकर कहा कि अरे, फिर तुमने उसे क्या करने को । कहा ?
प्रसाद गम्भीर होकर चुप बना रहा। थोड़ी देर बाद दृढ़ता से बोला, "इससे कहता हूँ कि नहीं, प्रेम की बात पर किसी तरह हम कुछ बोल नहीं सकते।"