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जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवः भाग ]
है | वह सब देखता है, पर उसका मन इनमें से किसी से नहीं भरता । वह सूरज निकल रहा है । आसमान कैसे रंग से खिल आया है । किरणों की कैसी लहरें चहुँ- प्रोर व्याप रही हैं । वह देखो सूरज लाललाल गोल-गोल उग आया ।... यह सन्ध्या आ गई। कैसी मीठी अँधियारी है । बादल कैसे सलोने, रंग-बिरंगे और प्यारे लगते हैं ।... यह बादल कड़का । घन-घोर घटा घिर आई । वह बिजली चमक गई । अब मेह पड़ेगा । पक्षी बसेरे की टोह में भागे जा रहे हैं ।... वह सब देखता है और प्रसन्न हो जाता है ।
गाय रंभा रही हैः बछड़ा कहाँ है, कहाँ है ? रस्सी से छूट कर बछड़ा वह कूदता आया और भरे थन में मुँह मारने लगा । पेड़ खड़े हैं जा हवा की थपकी लगी नहीं कि झूम उठते हैं । साल-साल खट्टे-मीठे फल देते हैं ।... घास है, जो नन्हीं-नन्हीं चारों ओर धरती पर उग छाई जाती है और फिर बेचारी हवा चौबीसों घण्टे चलती भीतर लेकर उन्हीं नथनों बहती रहती हैं। पानी
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। वह चलते पैरों की चोट के नीचे पिस मुँह उठाकर धूप की ओर देखने लगती है। रहती है और चौबीसों घण्टे हम उसे नथनों से बाहर कर देते हैं । और वह बहती रहती है, ऊपर से बरसता है तो धरती में से भी फूटता है। बादल में और बासन में, समान भावसे भरा हुआ रहता है |... चिन्तामणि सब देखता है । जिज्ञासा से भरा हुआ सब देखता है ।
नदी में और नल में
पानी पानी ही बना
से,
विस्मय से, प्रश्न
कबूतर की जोड़ी बैठी क्या कर रही है ? क्या कर रही है ? बड़ी मन है ! गुटुर गुटर-गू वह क्या कर रही हैं ? ...
चिन्तामणि आदर के साथ सब देखता है । वह सब चाहता है, इसलिए वह कुछ नहीं चाहता। उसका कमरा ज्ञान की किताबों से भरा पड़ा है । नई से नई और पुरानी से पुरानी किताबें उसकी अपनी हैं । सब हैं, पर कुछ नहीं है । उसका अपना आपा कहाँ हैं ? और इन सबका श्रापा कहाँ है ?...