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व्यर्थ प्रयत्न
चिन्तामरिण को अवस्था अधिक नहीं है । देह से दुबला है, मस्तक बड़ा, आँखें छोटी और तीव्र । चेहरा प्रभावात्पादक । लेखक है, और प्रोफेसर । कम लिखता है, पर लिखता है तो गहन । साथी अध्यापकों में अच्छी ख्याति है । बहुत पढ़ता है। वेतन मिलता है पाँच सौ, बचता एक पैसा नहीं । यह उस वक्त जब कि वह अकेला है, शादी नहीं की । कोई व्यसन उसे नहीं है । पिछले शनिवार की संध्या को पहली बार सिगरेट उसने पी । वह उसे बुरी मालूम हुई, इसीलिए हठपूर्वक उसे उसने पूरा पीकर छोड़ा । यह उसने सँगी-साथियों के बीच में नहीं किया, एकान्त में सिर्फ अपने सामने किया । अपने संकल्प में वह सँगी-साथियों का साथ नहीं चाहता । “मैं अकेला चलूँगा, अकेला । मैं, मैं हूँ ।" अब तक कोई कभी उसे सिगरेट न पिला सका । जब सबने देख लिया कि वह विजेय है, तब उसने सोचा कि मैं अब खुद अपने पर विजय पाऊँगा इसलिए उसने एकान्त कमरे में स्पर्द्धापूर्वक सिगरेट जला कर पी। उस का मन मचला आया, उबकी आने लगी, लेकिन शहीद की भांति वह सब सह गया । उसने सोचा कि यह सब मन की कमजोरी है । मैं अपने पर विजय पाऊँगा ।
स्त्रियाँ कई उसके जीवन में आई हैं, लेकिन सब राह में टूट गई हैं । १२८