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तो लाये ?
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वाले व्यग्र हैं । बाहर काफी लोग आ-जा रहे हैं। दो-चार पास-पड़ोस के प्रादमी भी वहाँ जमा हैं । शायद तबियत ज्यादा खराब है। इस तरह मैं भी वहां पहुंच गया।
बुड्ढा उस वक्त बेहोश था। उपचार किया जा रहा था, पर लोग देख रहे थे कि घड़ी अन्तिम है । अब होश आए भी कि न पाये। मैं एक लोहे के स्टूल पर खाट के पास बैठा था। घर के और लोग खड़े थे। इतने में उसे होश हुआ, आँखें खोली, इधर-उधर देखा। फिर मुझ पर
आँखें टिकीं। जैसे मुझे पहचानने में कुछ समय लगा। फिर बोला, "तो लाये ?"
कहकर मेरी तरफ देखते हुए उसकी आँखें फटी-की-फटी रह गई।
मैं उसकी आँखों की मोर देखता रह गया। लोग मौत को पहचान गए। वे रोने लगे। उसकी माँखों में मैं जो देख रहा था वह मौत ही थी, या कि अब भी प्रश्न था-"लाये ?" ___ मुझे लगा कि जैसे मेरे और सबके प्रति वह यही पूछता हुआ गया है, "तो लाये ?"