________________
पानवाला
कहाँ-कहाँ डोलू ? जोखों की चीज़ मुझ गरीब के पास अच्छी नहीं । जब जरूरत होगी माँग लूंगा। मेरे जीते-जी या मरने पर ये किसी चोर-उचक्के के हाथ पड़ जायँगी । बाबूजी, ये चीजें मैं किसी चोर के हाथ में नहीं पड़ने दूंगा।"
मैंने कहा, "तो मैं इनका क्या करूँगा ?"
"मैं बताता हूँ" उसने कहा और इसके बाद एक औरत का बखान करना शुरू कर दिया। बखान से मैं यह समझ सका कि यह स्त्री पर्याप्त रूप में असुन्दर रही होगी । उसका नख-शिख-वर्णन करके उसने कहा, "इस हुलिया की स्त्री मिले तो उसे दे देना । मुझे मिलेगी तो मैं माँग लूंगा।"
मैंने पूछा, “वहं कौन है ?" उसने कहा, “जी, ये सब चीजें उसकी ही हैं।" मैंने कहा, "हैं तो, पर वह तुम्हारी कौन है ?" वह इस प्रश्न के लिए जैसे तैयार न था। उसने कहा, "मेरी ? मेरी, जी वह कोई नहीं है।"
उसकी इस बात का कोई विश्वास कर सकेगा, यह वह कैसे समझ सकता था। मैंने बतला दिया कि सब-कुछ जान लिये बगैर मैं चीजें रखने के लिए बिलकुल तैयार न हूँगा। वह लाचार हो गया। __लाचार होकर, मैं जानता हूँ, वह निहाल भी हो गया। जिस वस्तु को बरसों-बरस अपने भीतर दुबकाये रखकर, उसको पोसता
और सुहलाता हुआ वह भटकता रहा है, । हृदय में से फाड़ निकालकर उसको वह हर किसी की उत्सुक दृष्टि के सामने लाकर कैसे रख सकता था ? लेकिन क्या वह, सच, नहीं चाहता कि किसी मानवी हृदय के सामने ऐसा करना ही पड़ जाय ? क्योंकि तब दूसरे हृदय की सहानुभूति की हल्की-सी गर्मी पाकर उसके हृदय की पत्थरकी-सी जम कर बैठी हुई वेदना द्रवित होकर आँखों की