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________________ एक टाइप अखबार का यह सफा देखा, वान्टेड पर कुछ देर रुके और तीन-चार मिनट में अखबार मेरी ओर बढ़ाकर कहा, "लीजिए साहब । थैक्स ।" 'अखबार लेकर मैंने तकिए के नीचे डाल लिया । अब वह रेल की खिड़की की राह बाहर भागते हुए खेतों की ओर देखने लगे। मालूम हुआ-वे इसमें बहुत मग्नता पा सकते हैं। मानों उन्हें वहाँ से कुछ सन्देश-सा, कुछ विस्मृति-सी अथवा कुछ स्मृति-सी प्राप्त होती है । वे कुछ देर चश्मे में से बाहर का दृश्य देखते, कुछ देर बाद चश्मा माथे पर चढ़ा लेते और खुली आँखों से दृश्यपान करते। मैंने पूछा, “कहिए आप कहाँ जाएँगे ?" बोले, “मैं भी दूर नहीं जाऊँगा।" मैंने पूछा, "क्या कारबार है ? मुलाजमत करते हैं ?" "करना-कराना तो साहब सब निबटा चुका । अब तो भगवान् का सुमरन ही है।" "पेन्शन हो गई है ?" "जी हाँ, बाल-बच्चे काम सँभालते हैं।" मैंने कहा, "बड़ा लड़का है ? क्या उमर है ?" "तीस बरस का होगा । रेल में ३५) का नौकर है।" "और उसके भाई-बहन हैं ?" "जी हाँ, चार भाई और चार बहनें और हैं।" "सबकी ब्याह-शादी हो गई ?" "नहीं साहब, दो लड़के और दो लड़कियाँ अभी छोटी हैं।" "क्या पेन्शन है ?" "अजी पैंतीस रुपए मिलते हैं। बीस रुपए से मेरी नौकरी लगी थी। रिटायर होते वक्त सत्तर तक पहुँच गया।...दो लड़के हाईस्कूल में पढ़ते हैं। छोटा प्राइमरी में है। बड़े दो नौकरी से लगे
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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