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कश्मीर-प्रवास के दो अनुभव
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श्रावण में श्रीनगर से एक छड़ी की यात्रा उठती है । वह अमरनाथ जाती है। अमरनाथ एक तीर्थ-धाम है। उसका बड़ा माहात्म्य है।
एक खासा मेला-का-मेला चलता है। राज्य की ओर से और समितियों की ओर से प्रबन्ध रहता है।
मेले में आधी संख्या साधुओं की रहती है, और आधे में शेष सब रहते हैं।
इस समय तक हम तीन ही रह गये थे। ग्रेजुएट मित्र तार से रुपया मँगाकर बहुत पहले हो घर जा चुके थे। हम तीन एक महन्त की साधु-मण्डली में मिलकर छड़ी के साथ उठ लिये। ___ छड़ी क्या वस्तु है, और साधु क्या पदार्थ हैं, इसके वर्णन
और विवेचन का यहाँ अवकाश नहीं। ___ कश्मीर केशर के लिए मशहूर है। संघ के निर्धारित यात्रामार्ग से तनिक हटकर केशर की क्यारियों के लिए पामपुर होते हुए भी यदि हम शीघ्रता करें तो छड़ी को अनन्तनाग में पकड़ सकते हैं, "यह हमने देखा । केशर की कृषि देखने की उत्कण्ठा थी ही। फिर पता चला, इधर ही एक गंधक का चश्मा भी है, और पास ही है एक ज्वालादेवी का मन्दिर। दोनों ही चीजें दर्शनीय हैं। गंधक के चश्मे में साफ स्वच्छ, निर्मल जल है; पर गंधक की बास से बसा हुआ। पांस खड़ा होना कठिन है। और ज्वालादेवी एक मन्दिर है, जहाँ पहाड़ की चोटी पर एक गहरा छिद्र है। कभीकभी वहाँ से ज्वाला की लपटें निकलती दीख पड़ी थीं। अब भी देवी ज्वाला के रूप में उसमें से प्रकट होकर दर्शन देती हैं, ऐसा प्रचलित विश्वास है । उसी छिद्र और उसी विश्वास पर मन्दिर का निर्माण हुआ है। .