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कः पन्या
११९ पर तो वह नियम-पर्वक उस क्लब का सदस्य भी न हो सकता; इसलिए उसने वह क्लब छोड़ दिया है। ___मैंने देखा लालचन्द पहले से कुछ पीला हो गया है। उसने मुझ से क्षमा माँगी कि इच्छा करके भी वह मुझ से मिलने का अपना सौभाग्य न बना सका। उसने कहा, "वह बड़ी उलझन में है, और अवश्य जल्दी ही मुझ से मिलना चाहता है।" ___ इसके बाद जब कभी मैंने उसे देखा, देखा कि वह उसी ओर बढ़ रहा है। वह सूक्ष्म से सूक्ष्मतर और क्षीण से क्षीणतर होता जाता है। उसके चेहरे पर विमलता के साथ चिन्ता की छाप बढ़ती जाती है। चेहरा नुकीला होता जाता है, वाणी में अधिकाधिक संकोच आता जाता है। बात मुंह से मुश्किल से निकलती है। निकलती है, तब मानो क्षमा-याचना करती हुई। सङ्कल्प-शून्य
और संदिग्ध-सी बनी ध्वनि मानो कुहरे की भाँति उसके शब्दों को डसे रहती है।
मुझे मालूम हुश्रा, चार भाई उसके और हैं। वे सब हृष्ट-पुष्ट हैं, दुबला-पतला वही है। खदर भी घर-भर में वही पहनता है । पढ़ा-लिखा सब भाइयों में वही ज्यादा है, बी० ए० पास है, और बुढ़िया माँ का वही सब से प्यारा है।
इन पार्टियों में ही मुझे उसके और भाई भी मिले। सबसे बड़े भाई अति सुन्दर, स्वस्थ पुरुष थे। चेहरा सुर्ख खिला रहता था। उनकी बात में जोर होता था और धमक। कुछ अजब रोब उनके व्यवहार में था । अँगरेजी भाषा से उन्हें साधारण परिचय था; किन्तु ऊँची-से-ऊँची सभा-समाज में वे विशिष्ट और मान्य पुरुष की भाँति गौरवशीलता के साथ व्यवहार करते थे। उनकी हँसी निस्संकोच होती थी। उनका बदन दोहरा था। बेफिक्री और विलास मानो उनके शरीर से विकीर्ण हो रहा था। उनकी अवस्था लगभग पैंतालीस के लगभग थी; पर धे पैंतीस के-से दिखाई देते