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जैनेन्द्र के ईश्वर सम्बन्धी विचार
पाश्चात्य दृष्टि
पाश्चात्य दार्शनिको ने भी एक परम सत्ता को स्वीकार किया है । अन्तर यह है कि पाश्चात्य दार्शनिको ने अधिकाशत सत्य को सिद्ध करने के लिए तर्क और बुद्धि का सहारा लिया है। ब्रेडले ने 'परम सत्य' को अनुभवगम्य रूप मे स्वीकार किया है ।
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आधुनिक विचारको की प्रास्तिकता
आधुनिक युग के भारतीय दार्शनिको और विचारको ने भी एक सत्य की सत्ता स्वीकार की है । स्वामी विवेकानन्द, परमहस, रविन्द्रनाथ टैगौर, डा० राधाकृष्णन, गाधीजी आदि महान विभूतियो ने ईश्वर के अस्तित्व को श्रद्वा और विश्वास के आधार पर स्वीकार किया है । विभिन्न पाश्चात्य भारतीय प्राचीन तथा आधुनिक दार्शनिको के सन्दर्भ मे जैनेन्द्र आध्यात्मिकता तथा विज्ञानवाद के सधिस्थल पर खडे आस्था-परक दार्शनिक है । यद्यपि जैनेन्द्र साहित्यकार हे और उन्हें परम्परागत दार्शनिक परम्परा मे विवेचित करना प्रसगत प्रतीत होता हे तथापि जैनेन्द्र के साहित्य मे व्यक्त दार्शनिकता को समझने के लिए उपरोक्त विविध दार्शनिको का वैचारिक दृष्टिकोण जानना
निवार्य था । दर्शन के क्षेत्र मे विवेकानन्द ने आधुनिक युग मे सर्वप्रथम भौतिक र आध्यात्मिक जगत मे सामन्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया था, किन्तु साहित्य जगत् में हमे वही प्रयत्न जैनेन्द्र द्वारा दृष्टिगत होता है । दर्शन जीवन का संद्धान्तिक पक्ष है तो सम्भवत साहित्य उसका व्यापारिक पहलू है । साहित्य के जीवन्त पात्रो मे जीवन के सत्य अत्यन्त ही प्रभावोत्पादक रूप मे घटित होते हुए दृष्टिगत होते है ।
जैनेन्द्र के अनुसार ईश्वर है और वही सब कुछ है । शेष सब उसी के होने की प्रतीति है । समस्त मानवीय क्रियास्रो तथा जडजगत का प्रेरक भी एकमात्र ईश्वर ही है । जैनेन्द्र की आस्तिकता उनके भावात्मक जीवन की आधारशिला है । उनकी रचनात्रो के पात्र परम प्रास्तिक और भाग्यवादी है । 'समय और हम' उनकी एक विचारपूर्ण दार्शनिक कृति है । उसका प्रथम प्रश्न ही ईश्वर के अस्तित्व तथा प्रास्तिकता का प्रत्यक्ष प्रमाण है । जैनेन्द्र की नवीनतम कृति जो अभी अप्रकाशित है, उसमे उन्होने अपने ईश्वर और तत्सबधी विचारो का विशद् विवेचन प्रस्तुत किया है, जिसकी पुष्टि उनके सृजनात्मक साहित्य में सहज की उपलब्ध हो जाती है ।
सृष्टि है इसलिए उसका सूष्टा भी है
जैनेन्द्र की दृष्टि मे इस विराट् सृष्टि को चलाने वाला शान्त व्यक्ति