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________________ जैनधर्म-सिद्धान्त अर्थात् धर्म के दश लक्षण [3] भूमिका बाबू कामताप्रसाद साहब जैन पत्र द्वारा इच्छुक हुए फि में जैन धर्म के दशलक्षण धर्म पर अपने विचार प्रगट करूँ । विचार क्या प्रगट किये जांय ? कोई बात मेरे मत अथवा सिद्धान्त के विरुद्ध होती तो मुझे अवसर था कि मैं जैनधर्म ये दशलक्षण धर्म के विषय में पूर्वपक्षी बनता । जैसी मुझे गुरु ने शिक्षा दी है, वही बात में धर्म के विषय में जैनमत में नी पाता हूँ । मुझे उसके साथ सहानुभूति है । मैं इस विषय में जैनमत का विरोधी नहीं हैं, किन्तु उसके साथ मुझे अनुकुलता है ।
SR No.010352
Book TitleJain Dharm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivvratlal Varmman
PublisherVeer Karyalaya Bijnaur
Publication Year
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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