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________________ ( २ ) 4 यह विदित हो कि मैं जैनधर्म का अनुयायी नहीं हूँ | मेरा सम्बन्ध राधास्वामी मत से है । बाल श्रवस्था से एकान्तसेवी होने के कारण मैं जैनियों से दो एक मनुष्यों को छोड़ कर - किसी से परिचित भी नहीं हूँ, और न इस समुदाय के लोग मुझे जानते हैं। जो दो एक जैनी मेरे मित्र है, उनके साथ मुझे परिचय इस कारण से है कि वह राधास्वामी मतके विषय में मुझसे पूछताछ करने आया करते थे । नहीं तो शायद न वह मुझे जानते और न मैं उन्हें जानता । 1 इस निबन्ध को पढ़कर कोई यह न कहे कि मैं अन्धाधुन्ध बिना समझे बूझे हुए किसी को प्रसन्न करने के लिए लिख रहा हूँ । मैं जो कुछ कहूँगा निष्पक्ष होकर कहूँगा । निष्पक्षता का श्रङ्ग धार्मिक पुरुष का लक्षण है । परन्तु इससे पहिले कि मैं जैनधर्म के लक्षण अपने विचारों के अनुसार प्रगट करूँ, इस बात के बता देने की आवश्यक्ता है कि जैनधर्म क्या है ? मैं जैनधर्म को आप क्या समझता हूं ? POWANSORCERERS
SR No.010352
Book TitleJain Dharm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivvratlal Varmman
PublisherVeer Karyalaya Bijnaur
Publication Year
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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