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-६ - वृत्ति और कर्म ।
कहा जाता हैं कि ब्राह्मणादि वर्ण वृत्ति भेद से है और इसी के प्रमाण में निम्नलिखित प्रमाण भी उपस्थित किया जाता
मनुष्यजातिरेकैव जातिनामोदयोद्भवा । वृत्तिभेदाहिताद्भदाच्चातुर्विध्यमिहाश्नुते ॥
भावार्थ-जाति नाम कर्म के उदय से मनुष्य जाति एक ही है और वृत्ति भेद धारण करने के कारण वह चार प्रकार की होजाती हैं।
यहां विचारणीय विषय यह है कि जब मनुष्य जाति, नाम कर्म के उदय से उत्पन्न होती है तो ब्राह्मण जाति, ब्राह्मण नाम मनुष्य जाति के कर्म के उदय से प्राप्त होगी। इसी प्रकार से क्षत्रिय जाति आदि भी। उपजातियों में उत्पन्न होने वाले व्यक्ति तत्तदुपजातिविशिष्ट मनुष्य जाति नामक नाम कर्म से उत्पन्न होते हैं । उत्तर भेदों में मूल कारण यदि छूट जाय तो उस मूल से उत्तर भेद का संबंध ही नहीं रह सकता इसलिये यह स्पष्ट सिद्ध है कि कोई भी जाति या उपजाति नाम कर्म से ही प्राप्त होती है।
जीव से संबंध रखनेवाली जितनी भी शारीरिक अधस्थाएँ है उन सब में दो कारण होते है। एक उपादान और दूसरा निमित्त । ब्राह्मणादि वर्ण में उपादान कारण मनुष्यगति