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________________ सर्वथा उचित नहीं है 1 कम्मणा बम्मणो होई बईसो कम्मा होई कम्मणा होइ खत्तिश्रो । सुहो हवइ कम्मरया | अर्थात् - कर्म से ही ब्राह्मण, कर्म से हो क्षत्रिय, कर्म मे ही वैश्य और कर्म से ही शूद्र होता है । यह पद्य उत्तराध्ययन नामक ग्रंथ का है जिसे जाति पांति विरोधी सज्जन अपने पक्ष-पोष के लिए उपस्थित करते हैं। जहा तक मानुन हैं - यह पद्य श्वेताम्बरीय श्रागम का है, कुछ भी हो - कर्म का अर्थ जो मन माने तौर पर वर्तमान कालीन जीविका किया जाता हैं वह सर्वथा असंगत है। यहां कर्म शब्द स्पष्ट है जिसका स्पष्ट आशय नाम कर्ज से है। विचार करने की बात है कि मनुष्य जाति जब नाम कर्म से है ता मनुष्य जाति के उपभेद प्रभेद भी तो उसी कर्म से होगे ? उस कर्म शब्द का अर्थ जबर्दस्ती वृत्ति करना सर्वथा अनुचित और अक्षम्य है । वास्तव में जो भी घटना घटित होती है उसका निमित्त कारण कुछ भी हो परन्तु उसमें उपादान कारण श्रष्ट विध कर्म ही होता है । जीव के साथ कर्म का अनादि संबंध है। जीन और कर्म दोनों ही अनादि हैं। जाति नाम का भी कर्म है जिसका जीव के साथ अनादि संबंध है । इसीलिए श्री सोमदेवाचार्य ने जातियों को अनादि बतलाया है ।
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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