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जैनधर्म
कन्याएँ थीं और उस समयके प्रमुख राजघरानोंमें उनका विवाह हुआ था । सिन्धुसौवीर देशका राजा उदयन, अवन्तीनरेश प्रद्योत, कौशाम्वीका राजा शतानीक, चम्पाका राजा श्रेणिक ( बिंबसार ) ये सब राजा चेटकके जामाता थे । जैनसाहित्य में कुणिक और बौद्ध साहित्य में अजातशत्रुके नामसे प्रसिद्ध मगधसम्राट तथा जैन, बौद्ध और ब्राह्मण सम्प्रदायके कथासाहित्य में प्रसिद्ध वत्सराज उदयन, ये दोनो चेटक राजाके सगे दौहित्र थे । राजा चेटक भारतके तत्कालीन गणसत्ताक राज्यों में से एक प्रधान राज्यके नायक थे । वे जैन श्रावक थे, उन्होंने प्रतिज्ञा ले रखी थी कि वे जैनके सिवा किसी दूसरेसे अपनी कन्याओंका विवाह न करेंगे। इससे प्रतीत होता है कि उक्त सब राजघराने जैनधर्मको पालते थे । राजा उदयनको तो जैनसाहित्य में स्पष्ट रूपसे जैन श्रावक बतलाया है । उदयनकी रानीने अपने महल में एक चैत्यालय बनवाया था और उसमें प्रतिदिन जिन भगवानकी पूजा किया करती थी। पहले राजा उदयन तापसधर्मियोंका भक्त था पीछे धीरे-धीरे जिन भगवानके ऊपर श्रद्धा करने लगा था ।
स्व॰ डा० याकोबी लिखते हैं कि चेटक जैनधर्मका महान आश्रयदाता था । उसके कारण वैशाली जैनधर्मका एक संरक्षणस्थान बना हुआ था । इसीसे बौद्धोंने उसे पाखण्डियोंका मठ बतलाया है ।
राजा श्रेणिक
( ई० पू० ६०१ - ५५२ )
भारत के इतिहास में बहुत प्रसिद्ध मगघाधिपति राजा बिम्बसार जैनसाहित्य में श्रेणिकके नामसे उति प्रसिद्ध है । यह राजा पहले बौद्ध भगवानका अनुयायी था। एक बार किसी चित्रकारने उसे एक राजकन्याका चित्र भेंट किया। राजा चित्र देखकर मोहित हो गया। चित्रकारसे उसने कन्याके पिताका