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इतिहास
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पुत्र उदयनने पाटलीपुत्रको मगधकी राजधानी बनाया। इस वंशके राज्यच्युत होनेपर नन्दवंशका राज्य हुआ और चन्द्रगुप्त मौर्यने नन्दोंका सिंहासन छीन लिया ।
चन्द्रगुप्तके बाद उसका पुत्र विन्दुसार गद्दीपर बैठा । और विन्दुसारके बाद उसका पुत्र अशोक पदासीन हुआ। अशोकके बाद उसके चार उत्तराधिकारी और हुए। अन्तिम मौर्य सम्राट् वृहद्रथको उसके सेनापति पुष्पमित्रने मारकर सिंहासनपर कब्जा कर लिया और इस तरह शुंगवंशका राज्य हुआ ।
अभी पुष्यमित्र मगधके सिंहासनपर जम भी न पाया था कि उसे दो प्रबल शत्रुओंका सामना करना पड़ा - उत्तर पश्चिमीय सीमा प्रान्तसे मनीन्द्रने उसके राज्यपर आक्रमण कर दिया और दक्षिणसे कलिंगराज खारवेलने । तीसरी पीढ़ीके बाद शुंगवंश भी समाप्त हो गया । उसके बाद आन्ध्रोंका राज्य हुआ जो दक्षिणी थे । ईसाकी चौथी शताब्दी के प्रारम्भ में आन्ध्रोंके एक अधिकारीने ही जिसका नाम या उपाधि गुप्त थी, गुप्तवंशकी नींव डाली । अस्तु, अव प्रकृत विषय पर आइये ।
१. विहार में जैनधर्म
बिहार तो भगवान महावीरकी जन्मभूमि, तपोभूमि ओर निर्वाण भूमि होने के साथ-साथ कार्यभूमि भी रहा है। वहाँके राजघरानोंसे महावीर भगवानका कौटुम्बिक सम्बन्ध भी था । फलतः उनके समय में और उनके बाद भी वहाँ जैनधर्मका अच्छा प्रसार हुआ और कई राजाओं और राजघरानोंने उसे अपनाया, जिनमें से कुछका परिचय इस प्रकार है
राजा चेटक
जैनसाहित्य में वैशालीके राजा चेटककी बड़ी ख्याति पाई जाती है । इसके कई कारण हैं । प्रथम तो यह राजा भगवान महावीरका महान उपासक था, दूसरे भगवान महावीरकी माता देवी त्रिशला राजा चेटककी पुत्री थी। राजा चेटकके आठ