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जैनधर्म नामसे ख्यात थे योग्य माने जाते थे तथा इतने प्रभावशाली थे कि अशोक की राज्यघोषणामें उनका मुख्य रूपसे निर्देश करना आवश्यक समझा गया। ___ उत्तर भारतमें जैनधर्मकी उन्नतिकी दृष्टिसे कलिंगका नाम उल्लेखनीय है । ईस्वी पूर्व दूसरी शताब्दीका प्रसिद्ध खारवेल शिलालेख कलिंगमें जैनधर्मकी प्रगतिको प्रमाणित करता है। श्री रंगा स्वामी आयंगरके मतानुसार बौद्धधर्मके प्रचारके प्रति अशोकने जो उत्साह दिखलाया उसके फलस्वरूप जैनधर्मका केन्द्र मगधसे उठकर कलिंग चला गया जहाँ हुएनत्सांगके समयतक जैनधर्म फैला हुआ था। __ खारवेल शिलालेखकी तरह ही प्रसिद्ध मथुराके शिलालेख प्रकट करते हैं कि ईसाकी प्रथम शताब्दीसे बहुत पहलेसे मथुरा जैनधर्मका एक मुख्य केन्द्र था। ___ इस प्रकार भगवान महावीरके निर्वाणके पश्चात् लगभग पाँच शताब्दियों तक जैनधर्म उत्तर भारतके विभिन्न प्रदेशोंमें बड़ी तेजीके साथ उन्नति करता रहा। किन्तु सातवीं शताब्दीके पश्चात् उसका पतन प्रारम्भ हो गया । ___ आगे उत्तर भारतके प्रत्येक प्रान्तमें भगवान महावीरके बादकी जैनधर्मको स्थितिका परिचय कराते हुए ऐसे राजवंशों और प्रमुख राजाओंका परिचय कराया जाता है, जिन्होंने जैनधर्मको अपनाया या जिनके साहाय्यसे जैनधर्म फूला और फला । उससे पहले उत्तर भारतके प्रारंभिक इतिहासका विहंगावलोकन कराना अनुचित न होगा।
भगवान महावीरके समयमें मगधके सिंहासनपर शिशुनाग वंशी राजा बिम्बसार उपनाम श्रेणिक विराजमान थे। उनका उत्तराधिकारी उनका पुत्र अजात शत्रु (कुणिक) हुआ। अजातशत्रुने अपने नाना चेटकके राज्यपर आक्रमण करके वैशाली तथा लिच्छवि देशोंको मगधके साम्राज्यमें मिला लिया और राजगृहीके स्थानपर वैशालीको राजधानी बनाया। अजात शत्रुके