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इतिहास नाम पूछा तो उसे ज्ञात हुआ कि वह वैशालीके राजा चेटककी सबसे छोटी पुत्री चेलना है। श्रेणिकने राजा चेटकसे उसे माँगा किन्तु चेटकने यह कहकर अपनी कन्या देनेसे इन्कार कर दिया कि राजा श्रेणिक विधर्मी है और एक विधर्मीको वह अपनी कन्या नहीं दे सकता। तब श्रेणिकके बड़े पुत्र अभयकुमारने कौशलपूर्वक चेलनाका हरण करके उसे अपने पिताको सौंप दिया। दोनों प्रेमपूर्वक रहने लगे। धीरे-धीरे चेलनाके प्रयत्नसे राजा श्रेणिक जैनधर्मकी ओर आकृष्ट हुआ और भगवान महावीरका अनुयायी हो गया। वह महावीरकी उपदेश सभाका मुख्य श्रोता था। जैन शास्त्रोंके प्रारम्भमें इस बातका उल्लेख रहता है कि राजा श्रेणिकके पूछनेपर भगवानने ऐसा कहा । श्रेणिकके चेलनासे कुणिक (अजातशत्रु) नामका पुत्र हुआ। जब कुणिक मगधके सिंहासन पर बैठा तो उसने अपने पिता श्रेणिकको कैद करके एक पिंजरे में बन्द कर दिया। एक दिन कुणिक अपने पुत्रको प्यार कर रहा था। उसकी माता चेलना उसके पास बैठी हुई थी। उसने अपनी मातासे कहा-"माँ ! जैसा मैं अपने पुत्रको प्यार करता हूँ, क्या कोई अन्य भी अपने पुत्रको वैसा प्यार कर सकता है। यह सुनकर चेलनाकी
आँखोंमें आँसू आ गये । कुणिकने इसका कारण पूछा तो चेलना बोली-पुत्र! तुम्हारे पिता तुम्हें बहुत प्यार करते थे। एक बार जब तुम छोटे थे तो तुम्हारे हाथकी अंगुलीमें बहुत पीड़ा थी। तुम्हें रात्रिको नोंद नहीं आती थी। तब तुम्हारे पिता तुम्हारी रक्त और पीवसे भरी हुई अँगुलीको अपने मुँहमें रखकर सोते थे क्योंकि इससे तुम्हें शान्ति मिलती थी।' यह सुनते ही कुणिकको अपने कार्यपर खेद हुआ और वह पिंजरा तोड़कर पिताको बाहर निकालनेके लिये कुल्हाड़ा लेकर दौड़ा। राजा श्रेणिकने जो इस तरह आते हुए कुणिकको देखा तो समझा कि यह मुझे मारने आ रहा है। अतः कुणिकके पहुँचनेके पहले ही पिंजरेमें सिर मारकर मर गया। आजसे ८२ हजार वर्ष बाद