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विविध मूर्तियाँ भी हैं । जैन सम्प्रदायमें शिखरजीकी तरह इस क्षेत्रकी भी बड़ी प्रतिष्ठा है।
शत्रुञ्जय-पश्चिमीय रेलवेके पालोताना स्टेशनसे १-२ मोल तलहटी है । वहाँसे पहाड़की चढ़ाई आरम्भ हो जाती है । रास्ता साफ है । पहाड़के ऊपर श्वेताम्बरोंके करीब साढ़े तीन हजार मन्दिर हैं जिनकी लागत करोड़ों रुपया है । श्वेताम्बर भाई सब तीर्थोंसे इस तीर्थको बड़ा मानते हैं। दिगम्बरोंका तो केवल एक मन्दिर है । पालीताना शहर में भी श्वेताम्बरोंकी २०२५ धर्मशालाएँ और अनेक मन्दिर हैं। यहाँ एक आगममन्दिर अभी ही बनकर तैयार हुआ है उसमें पत्थरोंपर श्वेताम्वरोंके सब आगम खोदे गये हैं। यहाँसे तीन पाण्डुपुत्रों और बहुतसे मुनियोंने मोक्ष लाम किया था।
पावागढ़-बड़ौदासे २८ मीलकी दूरीपर चांपानेरके पास पावागढ़ सिद्ध क्षेत्र है । यह पावागढ़ एक बहुत विशाल पहाड़ी किला है । पहाड़पर चढ़नेका मागे एकदम कंकरीला है । पहाड़के ऊपर आठ-दस मन्दिरोंके खण्डहर हैं, जिनका जीर्णोद्धार कराया गया है। यहाँसे श्रीरामचन्द्रके पुत्र लव और कुशको तथा अन्य बहुतसे मुनियोंको निर्वाण लाभ हुआ था।
माँगीतुंगी-यह क्षेत्र गजपन्था (नासिक) से लगभग अस्सी मीलपर है । वहाँ पास ही पास दो पर्वतशिखर हैं जिनमेंसे एकका नाम माँगी और दूसरेका नाम तुंगी है। माँगी शिखरकी गुफाओंमें लगभग साढ़े तीन सौ प्रतिमाएँ और चरण हैं और तुंगीमें लगभग तीस । यहाँ अनेक प्रतिमाएँ साधुओंकी हैं जिनके साथ पीछी और कमंडलु भी हैं और पासमें ही उन साधुओंके नाम भी लिखे हैं। दोनों पर्वतोंके बीचमें एक स्थान है जहाँ बलभद्रने श्रीकृष्णका दाह संस्कार किया था। यहाँसे श्रीरामचन्द्र, हनुमान, सुप्रीव वगैरहने निर्वाण लाभ किया था।
गजपन्था-नासिकके निकट मसरूल गाँवकी एक छोटी-सी